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उत्तराखंड के प्रमुख सैन्यकर्मी


माधो सिंह भण्डारी

ये 17वीं सदी में गढ़वाल के राजा महीपति शाह के प्रमुख सेनापति रहे। उनकी बहादुरी, त्याग एवं उदारता के किस्से आज भी गढ़वाल में प्रसिद्ध हैं। इतिहास में वे 'गर्वभंजक' के नाम से प्रसिद्ध हैं। उन्होनें कई युद्धों में विजय पायी, जिसमें 1635 में तिब्बत की सेना से हुआ युद्ध प्रमुख है। टिहरी गढ़वाल जनपद के मलेथा गांव में एक पहाड़ी के अन्दर से एक लम्बी गूल ( नहर) बनाकर उन्होंने इस क्षेत्र की भूमि को उपजाऊ एवं लाभदायक बनाया।

वीरचन्द्र सिंह गढ़वाली

इनका जन्म 24 दिसम्बर, 1891 को पौढ़ी गढ़वाल के रौणसेरा गांव में हुआ था। ये ब्रिटिश सेना के गढ़वाल राइफल्स में थे। 23 अप्रैल 1930 को पेशावर में खान अब्दुल गफ्फार खान (सीमान्त गांधी) के नेतृत्व में प्रदर्शन कर रहे सत्याग्रहियों पर इनके नेतृत्व में गढ़वाल राइफल्स के सिपाहियों ने गोली चलाने से इन्कार कर दिया। इस अवज्ञा के कारण इनके सहित गढ़वाल राइफल्स के सिपाहियों को गिरफ्तार कर मुकदमा चलाया गया। बागियों की तरफ से मुकदमा बैरिस्टर मुकुन्दीलाल ने लड़ा और सभी की आजीवन कारावास हो गई। विभिन्न जेलों में 11 वर्ष 3 माह 18 दिन रहने के बाद सन 1941 में रिहा हुए। 1 अक्टूबर 1979 को राम मनोहर लोहिया (दिल्ली) अस्पताल में इनकी मृत्यु हो गई।

दरबान सिंह नेगी

प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) के दौरान ये प्रथम गढ़वाल राइफल्स के नायक थे। इनकी वीरता पर इन्हें 1914 में 'विक्टोरिया क्रास' से सम्मानित किया गया था। प्रथम विश्व युद्ध में इस पुरस्कार को प्राप्त करने वाले वे दूसरे भारतीय सैनिक थे।

गबरसिंह नेगी 

प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान ही 1915 में दूसरी गढ़वाल राइफल्स बटालियन के राइफलमैन गबरसिंह को उनकी वीरता के कारण मरणोपरान्त 'विक्टोरिया क्रास' प्रदान किया गया था। इनका जन्म मज्यूड़, चंबा (टिहरी) में 21 अप्रैल 1895 को हुआ था। 10 मार्च 1915 को लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे।

मेजर सोमनाथ शर्मा

4 कुमाऊँ रेजीमेंट के सोमनाथ शर्मा को श्रीनगर शहर व हवाई अड्डा बचाने हेतु 1947 में मरणोपरान्त परमवीर चक्र सम्मान से सम्मानित किया गया था। यह भारत का सर्वोच्च रक्षा सम्मान है।

शूरवीर सिंह पंवार

कैप्टन शूरवीर सिंह पंवार का जन्म टिहरी गढ़वाल के पंवार राजवंश में हुआ था। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 1943 में इमरजेंसी कमीशन में इनको भारतीय सेना में कैप्टन का पद मिला। ये गढ़वाली, हिन्दी व संस्कृत साहित्य के विद्वान, लेखक, इतिहासकार व योग्य प्रशासक थे। इनकी प्रमुख रचनाएं फतेप्रकाश, अलंकार प्रकाश, गढ़वाली के प्रमुख अभिलेख एवं दस्तावेज आदि हैं।

मेजर शैतान सिंह

1962 में भारत-चीन युद्ध में लद्दाख में - कुमाऊँ रेजीमेन्ट के इनके नेतृत्व में सैनिकों ने जबरदस्त मोर्चाबन्दी की थी। असाधारण वीरता के लिए इन्हें मरणोपरान्त परमवीर चक्र प्रदान किया गया था।

विपिन चन्द्र जोशी

अल्मोड़ा मूल के निवासी श्री जोशी 1993-1994 तक भारतीय थल सेना के अध्यक्ष रहे।

एडमिरल देवेन्द्र जोशी

अल्मोड़ा मूल के एडमिरल देवेन्द्र जोशी 31 अगस्त 2012 से 26 फरवरी 2014 तक भारतीय नौसेनाध्यक्ष रहे।

मोहन चंद शर्मा मासीवाल

दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा के पुलिस निरीक्षक ओर अल्मोड़ा निवासी श्री मासीवाल 19 सितम्बर 2008 को दिल्ली में जामिया नगर के बटला हाउस में आतंवादियों के लिखाफ अभियान में शहीद हो गये। बहादुरी के लिए उन्हें 1 बार राष्ट्रपति पदक तथा 6 बाद पुलिस पदक से सम्मानित किया गया था। उन्होंने कुल 55 मुठभेड़ों में 40 आतंकियों को मारा था। मरणोपरांत उन्हें अशोक चक्र से सम्मानित किया गया।

गजेन्द्र सिंह बिष्ट

26 नवम्बर 2008 को मुम्बई स्थित नारीमन हाउस पर आतंकी हमले में जान की परवाह किए बिना श्री बिष्ट ने बन्धकों को रिहा कराने में प्रमुख भूमिका निभाई। मरणोपरान्त उन्हें अशोक चक्र से सम्मानित किया गया।


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