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उत्तराखंड में पायी जाने वाली खनिज संपदा व खनिज पदार्थ

अभी तक की खोजों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि उत्तराखण्ड खनिज की दृष्टि से एक मध्यम श्रेणी का राज्य है। यहाँ शिवालिक व लघु हिमालय श्रेणी के शैलों, दूनो तथा नदी घाटियों में खनिज व उपखिजन पाये जाते हैं। राज्य में खनिजों के खोज, सर्वेक्षण आदि हेतु भूतत्व एवं खनिज कर्म निदेशालय का गठन किया गया है। राज्य में पाये जाने वाले प्रमुख खनिज व उपखनिज इस प्रकार हैं -

चूना पत्थर - राज्य के देहरादून, टिहरी गढ़वाल, पौढ़ी गढ़वाल और चमोली जिलों में चूना पत्थर का विस्तृत निक्षेप पाया जाता है।


देहरादून के कालसी के पास स्थित मंदारम क्षेत्र तथा बारकोंट क्षेत्र में उत्तम किस्म के चूने-पत्थर का पर्याप्त भण्डार है। यह सीमेंट उत्पादन के लिए उत्तम श्रेणी का पत्थर है। इस जिले में उत्तम कोटि के चूने-पत्थर का दूसरा प्रमुख क्षेत्र डोईवाला से 25 किमी. उत्तरपूर्व में स्थित है। ऋषिकेश क्षेत्र में नीलकंठ, पंठरानू, बेली व भाडसी गांवों के पास चूना पत्थर के भण्डरों की खोज की गयी है। इस जिले के मंसूरी में क्रीम रंग का भारी व सख्त चूना पत्थर भण्डार उपलब्ध  है।


टिहरी के लोरानी, आगराखाल, नागिनी और नरेन्द्र नगर क्षेत्र में चूने के भण्डार हैं। पौढ़ी में ऊखीमठ तहसील, अलकनन्दा घाटी, पिण्डरलोहबा पट्टी के मध्यवर्ती भाग में विपुल मात्रा में चूना पत्थर उपलब्ध है। सर्वोत्तम श्रेणी का चूना पत्थर और डोलोमाइट चमोली के पीपलकोटी तथा रुद्रप्रयाग में पाया जाता है।


इसके अतिरिक्त नैनीताल, अल्मोड़ा एवं पिथौरागढ़ जिले के गंगोलीहाट में भी चूना पत्थर के निक्षेप हैं।

इस खनिज का उपयोग चूना निकालने के अलावा सीमेंट आदि उद्योगों में किया जाता है।


संगमरमर - संगमरमर मुख्य रूप से देहरादून एवं टिहरी जिलों में तथा गौण रूप से चमोली के अलकनन्दा विरही गंगा घाटियों में पाया जाता है। मसूरी (देहरादून) के समीप संगममर के पर्याप्त भण्डार (4 मिलियन टन) हैं।


मैग्नेसाइट - कुमाऊँ मण्डल के अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ व बागेश्वर और गढ़वाल मण्डल के चमोली में मैग्नेसाइट के विशाल भण्डार हैं। यह क्षेत्र न केवल राज्य का बल्कि देश का भी मैग्नेसाइट भण्डार का एक प्रमुख क्षेत्र है। चमोली के जोशीमठ, तपोवन, पोखारी, मंदाकिनी घाटी, पिण्डर घाटी तथा देवलधार आदि स्थानों पर मैग्नेसाइट के भण्डार है। इसके अलावा अल्मोड़ा के झिरौली क्षेत्र तथा पिथौरागढ़ के चण्डाक क्षेत्र में भी मैग्नेसाइट के पर्याप्त भण्डार हैं।


इस खनिज का उपयोग लोहा, इस्पात और सीमेंट के कारखनों में विशाल भट्टियों में तापसह ईंटों के रूप में किया जाता  है।


टॉल्क (सोप स्टोन) - यह अत्यन्त कोमल खनिज है जो ज्यों राज्य के चमोली, पिथौरागढ़, बागेश्वर तथा अल्मोड़ा जिलों में जाता है। इस खनिज का उपयोग सौन्दर्य प्रसाधन, टैल्कम पाउडर, न पेन्ट्स, साबुन, कीटनाशक पाउडर, वस्त्र उद्योग तथा कागज आदि के निर्माण में किया जाता है।


खड़िया (चाक) - राज्य में खड़िया (चाक) देहरादून, टिहरी, पौढ़ी, चमोली तथा नैनीताल जिलों में पाया जाता है। देहरादून के  मसूरी के समीप स्थित महागांव और कियारकुली खड़िया के क्षेत्र हैं। यहाँ की खड़िया में कैल्शियम सल्फेट की पर्याप्त मात्रा पायी जाती है। मसूरी के सहस्रधारा से लगभग 4 किमी. उत्तर में मंझरा में खड़िया के निक्षेपों का अन्वेषण हुआ है, जिसमें चूना व शैल का मिश्रण है तथा यह कड़ी, सफेद एवं पथरीली है। 


 देहरादून के ही लक्ष्मणझूला के समीप नीट गांव व सोत नाला में भी खड़िया की पेटियां हैं, जिनमें 5,000 टन खड़िया होने का अनुमान है।


टिहरी में सोंग नदी के दाहिने किनारे के रंगार गांव एवं रीरा गांव में खड़िया की बड़ी पेटियां चूने तथा स्लेट के साथ प्राप्त हुई हैं। इस क्षेत्र में 30,000 टन खड़िया के निक्षेप अनुमानित हैं।


इसके अतिरिक्त जखेरा, आगर-गिरिछीना, लोहार घाटी, मुवानी, देवस्थल, काण्डा, राई आगर, चमोली के तरोसी व हुऐना, नैनीताल तथा मंदाकिनी घाटी एवं पिण्डर घाटी में भी खड़िया की पेटियां स्थित हैं।


 इस खनिज का उपयोग उर्वरक, पोर्टलैंड सीमेंट, प्लॉस्टर आफ पेरिस आदि में किया जाता है।


रॉक फास्फेट - राज्य के देहरादून, टिहरी गढ़वाल तथा नैनीताल जिलों में रॉक फास्फेट के भण्डार हैं। देहरादून और टिहरी के मंसूरी, दुरमाला, किमोई, मसराना, माल देवता तथा चमसारी आदि मुख्य स्थान हैं जहाँ इस खनिज के पर्याप्त भण्डार है। इस  खनिज का उपयोग उर्वरक उद्योग, कोल फार्मेशन तथा अम्लीय मृदा के उपचार में किया जाता है।


फॉस्फोराइट – राज्य के टिहरी जिले के रझगेंवा क्षेत्र में फॉस्फोराइट का पर्याप्त भण्डार है। इसके अलावा देहरादून में भी इसके भण्डार हैं।


डोलोमाइट - राज्य के देहरादून, टिहरी व पिथौरागढ़ जिलों में डोलोमाइट के निक्षेप हैं। यह पोर्ट लैण्ड सीमेण्ट, प्लास्टर ऑफ पेरिस तथा तेजाब आदि के निर्माण में प्रयुक्त होता है।


सेलखड़ी - राज्य में सेलखड़ी मुख्यतः देहरादून, टेहरी तथा पौड़ी गढ़वाल जिलों में पाया जाता है, जबकि इसका अधिकांश उत्पादन पौढ़ी से किया जाता है। इसका उपयोग रासायनिक उर्वरक, सीमेन्ट, कागज आदि में होता है।


गंधक व माक्षिक - राज्य में गंधक की खोज सर्वप्रथम 1957 में चमोली के नंद प्रयाग से लगभग 51 किमी. पूर्व स्थित रूपगंगा घाटी में सुदौला ग्राम के समीप स्फटिक शिलाओं में किया गया। था। इसके बाद चमोली के ही गोहानाताल के पास चूने में, बद्रीनाथ के तप्तकुण्ड व तपोवन के तप्तकुण्ड के पास इस खनिज को पाया गया। देहरादून के सहस्त्रधारा प्रताप के जल में गंधक घुला होता है। यहाँ नहाने से त्वचा के कई रोग ठीक हो जाते हैं।


बेराइट्स – राज्य के देहरादून जिले में बेराइट्स के पर्याप्त भण्डार हैं।


एस्बेस्टस - यह खनिज राज्य के ऊखीमठ व कांधेरा (पौढ़ी ) तथा अल्मोड़ा जिलों में पाया जाता है। ताप सहन करने एवं रासायनिक क्रिया से अधिक प्रभावित नहीं होने की क्षमता होने के कारण औद्योगिक क्षेत्र में इसका प्रयोग अधिक होता है। इसका उपयोग तापरोधी वस्तुओं के निर्माण में किया जाता है।


जिप्सम - राज्य में जिप्सम मुख्यतः देहरादून (धपीला क्षेत्र तथा खियरकुलीव भाटा गांवों के पास ) टिहरी व पौढ़ी (खरारी घाटी, खेरा, लक्ष्मण झूला, मधुधानी, नरेन्द्रनगिन), नैनीताल (खुरपाताल, नैनीताल, मझरिया) तथा अल्मोड़ा में पाया जाता है। इसका उपयोग सीमेन्ट, गंधक व अमोनियम सल्फेट के निर्माण में किया जाता है।


लोहा - कुछ मात्रा में लोह का निक्षेप राज्य के नैनीताल, पौढ़ी, टिहरी तथा अल्मोड़ा जिलों में पाया जाता है। नैनीताल के 'कालाडुंगी और 'रामगढ़' क्षेत्रों में हेमेटाइट और मैग्नेटाइट दोनों प्रकार का लोहा मिलता है। गढ़वाल मण्डल के चांदपुर पट्टी, राजबगुना, कालीफाट, दूधातोली, चोपड़ा, लोहा गाँव, दशोली आदि जगहों पर लोहे के निक्षेप हैं।


तांबा - राज्य में तांबा चमोली, पौढ़ी, टिहरी, देहरा., नैनी, - अल्मो तथा पिथौरा. जिलों में पाया जाता है।


चमोली जिले के नागनाथ, पोखरी, धमैथी, धनपुर मोहनखाल क्षेत्रों में तांबा पाया जाता है। 


टिहरी का भागीरथी घाटी और पौड़ी गढ़वाल का धनपुरडोबरी लगभग 96 किमी. लम्बा क्षेत्र एक तांबा उत्पादक क्षेत्र है, जहाँ तांबा एवं जस्ता एक साथ पाया जाता है।


अल्मोड़ा के झिरोली गाँव के समीप फलंमती पहाड़ी श्रेणी और बागेश्वर के समीप थेलीपाटन में तांबे के भण्डार की खोज की गई है। 


सिलिकासैन्ड (सीसा) - राज्य के पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, देहरादून, उत्तरकाशी तथा टिहरी एवं पौढ़ी जिलों में सिलिकासैन्ड पाया जाता है। पिथौरागढ़ के चंडाक, देवलगढ़, रालम तथा भैंसवाल आदि स्थानों पर सीसा मिलता है। अल्मोड़ा के राई, चैनापानी, पट्टी खराही और विलौन क्षेत्र में मिलता है। देहरादून के टोंस घाटी क्षेत्र के कुमा-बुरेला तथा मुघौला में सीसा पाया जाता है।


ग्रेफाइट - राज्य के अल्मोड़ा, पौढ़ी गढ़वाल, दक्षिणी-पूर्वी नैनीताल व देहरादून जिलों में ग्रेफाइट पाया जाता है।


बेस मेटल्स- राज्य के अल्मोड़ा, चमोली, देहरादून, नैनीताल, पौढ़ी, टिहरी व पिथौरागढ़ जिलों में बेस मेटल्स पाया जाता है।


 पाथर और पटाल - राज्य के अल्मोड़ा जिले में उत्तम प्रकार का पटाल प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। पटाल का उपयोग मकानों की छतों, आंगन, नालियों, सड़कों आदि के निर्माण में किया जाता है।



 सोना - राज्य में कुछ मात्रा में सोना शारदा और रामगंगा के बालू में में पाया जाता है। इसके अतिरिक्त अलकनन्दा और पिण्डार के बालू में भी मिलता है।


चांदी - राज्य के अल्मोड़ा जिले में कुछ मात्रा में चांदी मिलता हैं।


टिन - राज्य के चमोली जिले में टिन पाया जाता है।


यूरेनियम - राज्य के टिहरी गढ़वाल जिले में यूरेनियम की उपलब्धता के संकेत प्राप्त हुए हैं।



राज्य खनन नीति 2001


नवम्बर, 2000 में गठन के पश्चात् राज्य सरकार ने 4 अप्रैल, 2001 को राज्य के लिए जिस खनन नीति को घोषणा की, उसके अनुसार, वन क्षेत्र में स्थित खदानों में खनन कार्य 'उत्तरांचल वन विकास निगम' तथा अन्य (राजस्व) क्षेत्रों में खनन कार्य 'गढ़वाल मण्डल विकास निगम' तथा 'कुमाऊ मण्डल विकास निगम द्वारा किया जाएगा।


 इस नीति के तहत एक 'खनिज निधि' की स्थापना की गयी है। जिसके अन्तर्गत राजस्व का 5% मुख्य खनिजों से तथा 5% उप खनिजों से एकत्रित करके इस निधि में जमा करने का प्रावधान है।


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