किसी भी स्थान की जलवायु वहाँ के देशान्तरीय एवं अक्षांशीय स्थिति, समुद्र तट से दूरी, जल और स्थल का वितरण, उच्चावच, वायुदाब, समुद्र तल से ऊँचाई, एव पवनों का धरातल पर वितरण आदि अनेक कारकों पर निर्भर करता हैं।
उत्तराखंड राज्य में जलवायु
समुद्र तल से बहुत अधिक ऊँचाई, भिन्न-भिन्न स्थानों की ऊँचाई में भिन्नता, पर्वत श्रेणियों की दिशा, ढाल की प्रवणता, छायादार ढाल व वनाच्छादन की घनाता आदि कारणों से राज्य की जलवायु में बहुत अधिक विषमता देखने को मिलती है। फिर भी यहाँ हम प्रदेश की जलवायु का अध्ययन सामान्य रूप से प्रचलित तीन ऋतुओं (ग्रीष्म, वर्षा, तथा शीत) के अनुक्रम में करेंगे। ध्यातव्य है कि ग्रीष्म ऋतु को स्थानीय भाषा में रूड़ी व खर्साऊ, वर्षा ऋतु को बसगाल व चौमासा तथा शीतऋतु को स्यून्द व शितकला नामों से जाना जाता है।
ग्रीष्म ऋतु (Summer)
भूमध्य रेखा से सूर्य जब कर्क रेखा की ओर बढ़ता है तो ग्रीष्म ऋतु की शुरूआत होती है। राज्य में ग्रीष्म ऋतु का प्रभाव मार्च के मध्य से जून तक रहता है। ताप बढ़ने व दाब घटने के कारण इस दौरान निचले भागों में तड़क-गर्जन के साथ छिटपुट वर्षा व कभी-कभी तूफान आते हैं।
मई से जून तक तापमान सर्वाधिक रहता है। इस दौरान राज्य में सामान्यतः उष्णकटिबंधीय दशाएं पाईं जाती है, फिर भी मैदानी क्षेत्रों की अपेक्षा तापमान कम रहता है। उच्च हिमालय की चोटियाँ तो सदैव हिमाच्छादित रहती हैं।
शिवालिक अर्थात वाह्य हिमालयी क्षेत्र का ग्रीष्मकालीन तापमान 29.4 से 38°c रहता है जबकि, इसके दक्षिण तथा निचली घाटियों में तापमान 40°c तक पहुँच जाता है।
शिवालिक की अपेक्षा मध्य हिमालय क्षेत्र का तापमान कम रहता है। उच्च हिमालय क्षेत्र में तापमान सबसे कम रहता है।
इस समय देहरादून का अधिकतम तापमान 30 से 35°c व न्यूनतम तापमान 21 से 22°c, नैनीताल का अधिकतम 24.7°c व न्यूनतम 8°c तथा हरिद्वार का 38°c रहता है।
वर्षा ऋतु (Monsoon)
इस ऋतु का कालावधि मध्य जून से अक्टूबर तक है। लेकिन सर्वाधिक वर्षा जुलाई, अगस्त तथा सितम्बर में होती है। गुजरात के तट से चलने वाला दक्षिणी-पश्चिमी मानसून राज्य में दक्षिण-पूर्व दिशा से 15 जून के आसपास प्रवेश करता है। इस मानसून से राज्य में कम वर्षा होती है। अधिकांश वर्षा बंगाल की खाड़ी वाले मानसून से होती है। इस ऋतु में राज्य में वार्षिक वर्षा औसतन 150 से 200Cm तक होती है।
उत्तराखंड राज्य के प्रमुख क्षेत्रों का वार्षिक वर्षा परिसर इस प्रकार है
1. सबसे कम वर्षा (40-80Cm) - वृहत्त हिमालय के ऊपरी व उत्तरी क्षेत्रों मेंसामान्यतः राज्य में दक्षिण से उत्तर व पूर्व से पश्चिम की ओर बढ़ने पर वर्षा की मात्रा घटती जाती है। फिर भी वर्षा की मात्रा पर धरातलीय बनावट का विशेष प्रभाव है। 1080 मी. की ऊंचाई पर स्थित नरेन्द्र नगर (टिहरी) में 318 सेमी. वर्षा होती है, तो 1600 मी. की ऊँचाई पर स्थित टिहरी में केवल 98 सेमी. वर्षा होती है। राज्य के कुछ प्रमुख स्थानों के सामान्य वार्षिक वर्षा को अधोलिखि चार्ट में देखें -
स्थान |
औ.वा. वर्षा (सेमी) |
नरेन्द्रनगर |
318.0 |
राजपुर |
318.5 |
मंसूरी |
242.5 |
देहरादून |
230.0 |
कोटद्वार |
180.0 |
लैन्सडोन |
210.5 |
नैनीताल |
270.0 |
अल्मोड़ा |
104.0 |
पिथौरागढ़ |
122.0 |
श्रीनगर |
93.0 |
कर्णप्रयाग |
136.0 |
टिहरी |
98.0 |
शीत ऋतु (Winter)
इस ऋतु का प्रभाव मध्य अक्टूबर से मध्य मार्च तक रहता है। शीत ऋतु के शुरू होते ही राज्य में आकाश स्वच्छ हो जाता है और तापमान गिरने लगता है। जनवरी में तापमान अपने न्यूनतम बिन्दु पर पहुँच जाता है। जनवरी राज्य का सबसे ठण्डा और जून सबसे गर्म महिना है। इस समय राज्य के 1550 मीटर से अधिक ऊँचाई वाले लगभग सभी स्थानों पर हिमपात होना शुरू हो जाता है, लेकिन 2800 मी. से निचले क्षेत्रों का हिम शीघ्र ही पिघलभी जाता है।
दिसम्बर और जनवरी के महिने में राज्य कभी-कभी पाला भी में पड़ता है तथा सूर्योदय के पहले एवं बाद में 2-3 घण्टों तक कोहरा छाया रहता है।
इस ऋतु (अधिकांश दिसम्बर-जनवरी-फरवरी में) में पश्चिमी चक्रवातों, जो कि उत्तर दिशा से जाता है, से राज्य में जल के साथ साथ कभी-कभी ओलों की भी वर्षा होती है। इस समय पौढ़ी गढ़वाल, टिहरी गढ़वाल, अल्मोड़ा व देहरादून जिलों में सर्वाधिक वर्षा होती है, जिसकी मात्रा 12.5 सेमी से कुछ अधिक होती है।
ऊँचाई आधार पर जलवायु विभाजन के
डॉ. एस. सी. खर्कवाल ने ऊँचाई, ताप व वनस्पतियों के अनुसार राज्य को 6 जलवायु क्षेत्रों में बांटा है, जो निम्न प्रकार हैं
1. उपोष्ण जलवायु - 900 मी. तक ऊँचाई के क्षेत्र - यथा भाभर, तराई व दून क्षेत्र |6. शीत शुष्क जलवायु- 2500-3500 मी. तक ऊँचाई वाले ट्रांस हिमालयी क्षेत्र ।
हिमाच्छादित क्षेत्र की जलवायु
राज्य के तीनों सीमान्त जिलो (उत्तर., चमो., पिथो.) के उत्तरी भाग में इस क्षेत्र का विस्तार है
उच्च हिमालय के 4000 मी. से ऊपर के ये क्षेत्र वर्ष भर हिमाच्छादित रहते हैं। अतः यहाँ बर्फीली जलवायु पाई जाती है।
मार्च में शीत कम होने पर यहाँ गरज के साथ बर्फीले तूफानों का दौर शुरू हो जाता है। मई-जून में लगभग प्रत्येक दिन दोपहर के बाद गर्जन-तर्जन के साथ बिजली चमकती है और थौड़ी-बहुत वर्षा होती है।
ग्लैशियरों के खिसकने तथा सूर्योदय व सूर्यास्त के समय हिमखंड लटकने की घटनाएं होना यहाँ की एक सामान्य बात है।
मानसून ऋतु में ताप के बढ़ने के साथ हिमस्खलन की तीव्रता बढ़ जाती है। इस समय की हिमस्खलन आकस्मिक, भीषण व अनिष्टकारी होती हैं।
शीत ऋतु में यहाँ भीषण बर्फवारी होती है। बर्फीली आंधियाँ चलती है। तापमान शून्य से नीचे चला जाता है। गहरी घाटियों का तापमान कुछ अधिक रहता है।