नैनीताल
नैनीताल सरोवर नगरी या झीलों की नगरी के नाम से विख्यात नैनीताल नगर तीन ओर से टिफिन टॉप, चायनापीक, लड़िया कांटा, स्नोव्यू, हाड़ी गडी, शेर का डांडा आदि ऊंची-ऊंची पहाड़ियों से घिरा है। यह नगर समुद्रतल से लगभग 1938 मी. की ऊंचाई पर स्थित है। विश्व पर्यटन के मानचित्र पर यह एक ऐसा पर्यटन स्थल है, जहां सबसे अधिक झीलें हैं।
नैनीताल की झीलें हिमालय के केंद्र में विचित्र हिल स्टेशन की सुंदरता को समेटती हैं। यह शहर खुद नैनी झील से अपना नाम लेता है, जो नैनीताल के केंद्र में स्थित सबसे लोकप्रिय झील है। यहां की झीलों की सुंदरता, धुंध से ढकी चोटियों की राजसी पृष्ठभूमि के खिलाफ गहरे हरे-नीले पानी के साथ, पूरे साल हजारों पर्यटकों को हिल स्टेशन की ओर आकर्षित करती है।
नैनीताल
की झीलों का क्रिस्टल-क्लियर
वाटर विभिन्न गतिविधियों के लिए लोकप्रिय
है। जबकि वन-क्लैड
जल निकायों की प्राकृतिक सुंदरता
शटरबग्स के लिए अद्भुत
फोटोग्राफिक अवसर प्रदान करती
है, झीलें अपनी पक्षी आबादी
के लिए भी लोकप्रिय
हैं, और दुनिया भर
के बर्डवॉचर्स द्वारा दौरा किया जाता
है। झीलें नौका विहार और
नौकायन के लिए एक
सुंदर स्थान भी प्रदान करती
हैं। मछली पकड़ने के
अवसरों के लिए एंगलर्स
और मछली पकड़ने के
शौकीन भी नैनीताल की
झीलों को अक्सर देखते
हैं।
यहाँ नैनीताल में झीलों की एक सूची है:
- सत्तल झील
- सरियाताल
- खुर्पाताल झील
- नौकुचियाताल झील
- भीमताल झील
- कमलताल
- गरुड़ ताल
- इस नगर के बीच में नैनी झील/ताल है, जिसकी लम्बाई लगभग 1500 मी., चौड़ाई 510 मी. तथा गहराई 10 से 156 मी. है। यह ताल तीन ओर से 7 पहाड़ियों या सप्तभृंग (आयर पात, देवपात, हाड़ीगदी, चायना पीक, स्नोव्यू, आलमसरिया कांटाऔर शेर का डांडा) से घिरा हुआ है। ताल के दोनों ओर सड़क बनी है। ताल का ऊपरी भाग मल्लीताल और निचला भाग तल्लीताल कहलाता है। इस झील के अलावा आस-पास अन्य झीलें भी हैं. है जिन्हें छः खाता कहा जाता है। 1882 में काठगोदाम तक रेल लाइन तथा 1891 में जिला मुख्यालय बन जाने के बाद इस झील नगरी का तेजी से विकास हुआ।
- सन् 1900 में नैनीताल में मल्लीताल में राजभवन या सचिवालय भवन की स्थापना की गई थी, जिसका 1962 से उ. प्र. की ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में उपयोग किया जाता था। राज्य निर्माण के बाद 9 नवम्बर 2000 से इसी भवन में उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय को शिफ्ट किया गया है।
नैनीताल के प्रमुख दर्शनीय स्थल निम्न प्रकार हैं
नैना देवी मन्दिर - नैनीताल में नैनी झील के किनारे मल्लीताल के पास मां नैना देवी का भव्य मन्दिर स्थित है। प्राचीन नैना देवी के मन्दिर का निर्माण श्री मोतीराम शाह जी ने कराया था जो 1880 के भीषण भू-स्खलन में नष्ट हो गया था। दबी मूर्ति को निकालकर वर्तमान स्थान पर नए सिरे से मन्दिर का निर्माण कर ज्येष्ठ नवमी सन् 1882 में इसकी पुनः स्थापना की गई।
नैनापीक -
नैनापीक (2,611 मीटर) नैनीताल
की सबसे ऊंची चोटी है जो कि शहर से 5.5 किमी की दूरी पर स्थित है। नैनापीक से हिमालय
की मनोरम छठा को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
स्नो व्यू - स्नोव्यू
शिखर की ऊंचाई 2,270 मी.
है। यह बहुत आकर्षक
स्थल है जहां पैदल
व रज्जू मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकताहै। रोप
वे मल्लीताल से बनाया गया
है।
नैनी झील - सात पहाड़ियों (सप्तभृंग) से घिरी नैन
(आंख) के आकार वाली
यह झील नैनीताल की
पहचान है। इस झील
का नैना नाम देवी
नैना के नाम पर
पड़ा है। पौराणिक कथाओं
के अनुसार जब भगवान शिव
देवी सती के मृत
शरीर को ले जा
रहे थे तो उनकी
आँख यहां पर गिरी
और झील का निर्माण
हो गया ।
नलताल - नैनीताल
से 27 किमी दूर नलताल
स्थित है। कमल पुष्पों
की प्रचुरता के कारण इसे
कमलताल भी कहते हैं।
भुवाली - यह स्थल समुद्र तल से 1106 मीटर की ऊँचाई पर नैनीताल से 11 किमी दूर स्थित है। भुवाली अपनी प्राकृतिक उत्कृष्टता एवं पर्वतीय फल बाजार के लिए प्रसिद्ध है।
भीमताल - यह स्थल समुद्र तल
से 1370 मीटर की ऊँचाई
पर भुवाली से लगभग 11 किमी
एवं नैनीताल से 22 किमी की दूरी
पर स्थित है। भीमताल की
सौन्दर्यपूर्ण झील पर्यटकों को
लिए भव्य दृश्य प्रदान
करती है। यह झील
नैनी झील से बड़ी
है। पर्यटक झील में नौकायन
का आनन्द प्राप्त करते है। झील
के मध्य में एक
द्वीप है जिस पर
एक रेस्टोरेन्ट स्थित है।
कैंची धाम - नैनीताल-अल्मोड़ा मार्ग पर भुवाली से 8 किमी दूर नीम करौली महाराज द्वारा स्थापित यह मन्दिर आज तीर्थाटन काएक महत्वपूर्ण पड़ाव बन गया है। यहां प्रतिवर्ष 15 जून को विशाल भण्डारे का आयोजन किया जाता है। एक लैण्डस एण्ड लैण्डस एण्ड नैनीताल से 4.08 किमी. की दूरी पर स्थित है। इस स्थान से खुर्पाताल का रमणीक दृश्य तथा ऊंची नीची मनोरम पर्वत श्रृंखलाओं का भी दर्शन किया जा सकता है।
कार्बेट रा. उद्यान
1936 में हैली राष्ट्रीय
उद्यान के नाम से स्थापित इस उद्यान को वर्तमान नाम 1957 में मिला। यह 520.82 वर्ग
किमी (312.76 वर्ग किमी पौढ़ी में व 208.8 वर्ग किमी क्षेत्र नैनीताल में) क्षेत्र
में विस्तृत है।
- इस पार्क का प्रवेश द्वार ढिकाला (नैनीताल)
में है, जो कि रामनगर के काफी निकट है। • इस राष्ट्रीय उद्यान में राज्य के अन्य उद्यानों
की अपेक्षा पर्यटक अधिक आते हैं।
कालाढूंगी- नैनीताल से 50 किमी. व कार्बेट से
35 किमी. की दूरी पर कालाढूंगी स्थित है। यहाँ जिम कार्बेट का मकान और संग्रहालय वन्य
प्रेमियों का मुख्य आकर्षण है।
वेधशाला - शहर4.4 किमी दूर स्थित 1651 मीटर ऊंचीपहाड़ी पर नैनीताल की वेधशाला स्थित है। घोड़ा खाल - नैनीताल से लगभग 15 किमी दूर घोड़ाखाल नामक स्थान है, जहां पर न्यायकारी ग्वैल या गोल्लु देवता का मन्दिर है। जनश्रुति के अनुसार न्याय न मिलने पर निर्दोष व्यक्ति ग्वैल देवता के दरबार में प्रार्थना पत्र जमा करता था तथा उसको ग्वैल देवता न्याय दिलाते थे। स्थानीय लोग इस न्याय के देवता को डाना ग्वैल, गैराणक ग्वैल, बणी ग्वैल के नाम से भी पूजते हैं।
काठगोदाम – काठगोदाम पूर्वोत्तर रेलवे का बड़ी लाइन) कुमाऊँ क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन है। यह स्टेशन 1884 में चालू हुआ था। कुमाऊं के पर्वतीय क्षेत्रों एवं पर्यटन स्थलों को देश के अन्य भागों से सीधे जोड़ने वाला यह स्टेशन कुमाऊं का प्रवेश द्वार माना जाता है। यह पहाड़ी क्षेत्र का प्रमुख व्यापारिक मंडी भी है। नैनीताल, भीमताल, कौसानी, रानीखेत और अन्य पर्यटन स्थलों के लिए देश-विदेश से आने वाले सैलानी इसी रेलवे स्टेशन पर निर्भर करते हैं। 1994 में इसे बड़ी लाइन बनाया गया था।
हल्द्वानी
16वीं सदी में चन्द राजा रूपचंद के समय गौला नदीतट पर वर्तमान हल्द्वानी वाले स्थान
पर बस्तियां बननी शुरू हुई। आज यह राज्य का सबसे बड़ा व्यापारिक नगर है। इस क्षेत्र
में हल्दू के पेड़ों की अधिकता के कारण पहले इसे हल्दूवणी कहा जाता था। 1834 में कमिश्नर
विलियम टेल ने इसे वर्तमान हल्द्वानी नाम दिया। कमीश्नर रैमजे ने इस क्षेत्र में अनेक
नहरे बनवायी। इसे भीकुमायूं का द्वार कहा जाता है।
- यह नगर बरेली काठगोदाम रेल पथ पर काठगोदाम से 8 किमी. दूरी पर दक्षिण की ओर स्थित है।
- हल्द्वानी-काठगोदाम संयु. नगर निगम जनसंख्या की दृष्टिसे देहरादून व हरिद्वार के बाद तीसरा सबसे बड़ा नगर निगम है। यहाँ राज्य सरकार के अनेक प्रतिष्ठान है।
रानीबाग - उत्तरायणी मेले के लिए प्रसिद्ध यह स्थल हल्द्वानी से 9 किमी. की दूरी पर गौला नदी तट पर है। कत्यूरी शासक राणा प्रीतम देव की पत्नी व मालूसाही की माँ जियारनी का तपस्थली होने के कारण इस स्थल का यह नाम पड़ा।
मुक्तेश्वर – हल्द्वानी से 51 किमी की दूरी पर स्थित यह नगर फलदार तथा बांज-बुराँस के घने वृक्षों से घिरा है, जोकि समुद्रतल से लगभग 3 हजार मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ 1890 में स्थापित भारतीय पशु चिकित्सा शोध संस्थान' तथा मुक्तेश्वर मंदिर है।
रामगढ़ - यह स्थान मुक्तेश्वर से कुछ ही दूरी पर है। इसी के पास गागर नामक स्थान भी है। ये दोनों स्थान रसीले फलों (सेब, नाशपाती ) के केन्द्र तथा अपनी प्राकृतिक सुन्दरता के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ रविन्द्र नाथ टैगोर व महादेवी वर्मा ने प्रवास किया था। यहाँ कवयित्री महादेवी वर्मा की स्मृति में एक संग्रहालय भी है।
रामनगर- इस नगर को 1850 में कमिश्नर रैमजें ने बसाया था। इसीलिए प्रारम्भ में इसका नाम रैमजे नगर था, फिर रामजीनगर हुआ पुनः रामनगर। यह कोसी तट पर है। यह मुरादाबाद काशीपुर रेल पथ का अंतिम स्टेशन है। इस स्टेशन का कार्बोट के पर्यटक अधिक उपयोग करते है, क्योंकि कार्बेट का प्रवेश द्वार ढिकाला इसके काफी नजदीक है।
गर्जिया- रामनगर
से 10 किमी. दूर रानीखेत मार्ग पर - गर्जिया में कोसी नदी के बीचो-बीच गर्जिया देवी
मंदिर स्थित है। यहाँ से पास में ही सीतावनी है। जहाँ महर्षि बाल्मिकी आश्रम के भग्नावशेष
आज भी मौजूद हैं। गर्जिया के पास स्थित ढिकुली में कत्यूरियों की राजधानी थी। ढिकुली
से बौद्धकालीन मूर्तियाँ भी यहाँ पाई गई हैं।
FAQ 1 :नैनीताल में कौन-कौन से झील है?
सत्तल झील,सरियाताल,खुर्पाताल झील,नौकुचियाताल झील,भीमताल झील,कमलताल,गरुड़ ताल
FAQ 2 :नैनीताल के प्रमुख दर्शनीय स्थल कौन-कौन से हैं?
नैना देवी मन्दिर,नैना देवी मन्दिर,स्नो व्यू,नैनी झील,नलताल,भ,कैंची धाम,कार्बेट रा. उद्यान,गर्जिया आदि.