Constitution of India - Articles, Schedules and Parts | भारत का संविधान - अनुच्छेद , अनुसूचियाँ और भाग
भारत का संविधान 26 नवंबर 1949 को भारत की संविधान सभा के द्वारा पारित हुआ | और इसे 26 जनवरी 1950 से लागू किया गया | भारत का संविधान ( bhaarat ka sanvidhaan ) विश्व के गणतांत्रिक देशों का सबसे बड़ा लिखित संविधान हैं |
संविधान निर्माण के समय इसमें कुल 395 अनुच्छेद, 8 अनुसूचियाँ और 22 भागों मे विभाजित किया गया था | परंतु वर्तमान समय मे 465 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियाँ और 22 भागों मे विभाजित हैं |
संविधान निर्माण की प्रक्रिया मे कुल 2 वर्ष, 11 महीना और 18 दिन लगे, संविधान के प्रारूप पर कुल 144 दिन बहस हुई | संविधान सभा की अंतिम बैठक 24 जनवरी 1950 को हुई और उसी दिन संविधान सभा के द्वारा डॉ. राजेंद्र प्रसाद को भारत का राष्ट्रपति चुना गया |
भारतीय संविधान का निर्माण करने वाली संविधान सभा का गठन जुलाई, 1946 मे किया गया | 9 दिसम्बर, 1946 को संविधान सभा की प्रथम बैठक नई दिल्ली स्थित कौसिल चैम्बर के पुस्तकालय भवन मे हुई | सभा के सबसे बुजुर्ग सदस्य डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को सभा का अस्थाई अध्यक्ष चुना गया | 11 दिसंबर, 1946 को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के स्थाई अध्यक्ष निर्वाचित हुए | Read Also : लक्ष्मीकांत 6 वां संस्करण भारतीय राजनीति PDF 2021
संविधान सभा की प्रमुख समितियाँ एवं उनके अध्यक्ष
नोट : मौलिक अधिकारों एवं अल्पसंख्यकों संबंधी परामर्श समिति की दो उपसमितियाँ थीं--
(a) मौलिक अधिकार उपसमिति - जे. वी. कृपलानी
(b) अल्पसंख्यक उपसमिति - एच. सी. मुखर्जी
संविधान सभा की महिला सदस्य
संविधान सभा में महिला सदस्यों की संख्या 15 थी |
1. अम्मू स्वामीनाथन
2. ऐनी मैस्करीन
3. बेगम एजाज रसूल
4. दक्ष्यानी वेल्यादुन
5. जी. दुर्गाबाई
6. हंसा मेहता
7. कमला चौधरी
8. लीला रे
9. मालती चौधरी
10. पूर्णिमा बनर्जी
11. रेणूका राय
12. सरोजिनी नायडू
13. राजकुमारी अमृतकौर
14. सुचेता कृपलानी
15. विजयालक्ष्मी पंडित
प्रारूप समिति के सदस्य
प्रारूप समिति के सदस्यों की संख्या सात थी, जो इस प्रकार है-
1. डॉ. भीमराव अम्बेदकर (अध्यक्ष)
2. एन. गोपाल स्वामी आयंगर
3. अल्लादी कृष्णा स्वामी अय्यर
4. कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी
5. सैय्यद मोहम्मद सादुल्ला
6. एन. माधव राव (बी. एल. मित्र के स्थान पर)
7. डी.पी. खेतान (1948 ई. में इनकी मृत्यु के बाद टी. टी. कृष्णामचारी को सदस्य बनाया गया)।
कैबिनेट मिशन (1945 ई.) के प्रस्ताव पर गठित अन्तरिम मंत्रीमंडल (2 सितम्बर, 1946 ई.)
मंत्रीमंडल में शामिल मुस्लिम लीग के सदस्य (26 अक्टूबर, 1946 ई.)
स्वतंत्र भारत का पहला मंत्रीमंडल, 1947
संविधान सभा द्वारा किए कुछ अन्य कार्य :
1. इसने मई, 1949 में राष्ट्रमंडल में भारत की सदस्यता का सत्यापन किया।
2. इसने 22 जुलाई, 1947 को राष्ट्रीय ध्वज को अपनाया।
3. इसने 24 जनवरी, 1950 को राष्ट्र गान एवं 26 जनवरी, 1950 को राष्ट्रगीत को अपनाया।
भारतीय संविधान की उद्देशिका अथवा प्रस्तावना
नेहरू द्वारा प्रस्तुत उद्देश्य संकल्प में जो आदर्श प्रस्तुत किया गया उन्हें ही संविधान की उद्देशिका में शामिल कर लिया गया। संविधान के 42वें संशोधन (1976 ई.) द्वारा यथा संशोधित यह उद्देशिका निम्न प्रकार है
"हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्वसम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को :
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय,
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,
प्रतिष्ठा और अवसर की समता
प्राप्त करने के लिए तथा उन सब में
व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की
एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता
बढ़ाने के लिए
दृढ़-संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई. (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।"
भारतीय संविधान के विदेशी स्रोत्र
भारत के संविधान के निर्माण मे निम्न देशों के संविधान से सहायता ली गयी है -
1. सयुंक्त राज्य अमेरिका
2. ब्रिटेन
3. आयरलैंड
4. आस्ट्रलिया
5. जर्मनी
6. कनाडा
7.दक्षिण अफ्रीका
8. रूस
9. जापान
भारतीय संविधान के भाग
मौलिक अधिकार
भारतीय संविधान के कुछ महत्वपूर्ण अनुच्छेद
अनुच्छेद-1 : यह घोषणा करता है कि भारत 'राज्यों का संघ' है।
अनुच्छेद-2 : नए राज्य के प्रवेश या स्थापना का प्रावधान।
अनुच्छेद-3 : संसद विधि द्वारा नये राज्य बना सकती है तथा पहले से अवस्थित राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं एवं नामों में परिवर्तन कर सकती है।
अनुच्छेद-5 : संविधान के प्रारंभ होने के समय भारत में रहने वाले वे सभी व्यक्ति यहाँ के नागरिक होंगे, जिनका जन्म भारत में हुआ हो, जिनके पिता या माता भारत के नागरिक हों या संविधान के प्रारंभ के समय से भारत में रह रहे हों।
अनुच्छेद-53 : संघ की कार्यपालिका संबंधी शक्ति राष्ट्रपति में निहित रहेगी।
अनुच्छेद 64 : उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन अध्यक्ष होगा।
अनुच्छेद-74 : एक मंत्रिपरिषद् होगी, जिसके शीर्ष पर प्रधानमंत्री रहेगा, जिसकी सहायता एवं सुझाव के आधार पर राष्ट्रपति अपने कार्य संपन्न करेगा। राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् के लिए किसी सलाह के पुनर्विचार को आवश्यक समझ सकता है, पर पुनर्विचार के पश्चात् दी गई सलाह के अनुसार वह कार्य करेगा। इससे संबंधित किसी विवाद की परीक्षा किसी न्यायालय में नहीं की जायेगी।
अनुच्छेद-76 : राष्ट्रपति द्वारा महान्यायवादी की नियुक्ति की जायेगी।
अनुच्छेद-78 : प्रधानमंत्री का यह कर्तव्य होगा कि वह देश के प्रशासनिक एवं विधायी मामलों तथा मंत्रिपरिषद् के निर्णयों के संबंध में राष्ट्रपति को सूचना दे, यदि राष्ट्रपति इस प्रकार की सूचना प्राप्त करना आवश्यक समझे।
अनुच्छेद-86 : इसके अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा संसद को संबोधित करने तथा संदेश भेजने के अधिकार का उल्लेख है।
अनुच्छेद-89 : राज्य सभा के सभापति एवं उपसभापति ।
अनुच्छेद-108 : यदि किसी विधेयक के संबंध में दोनों सदनों में गतिरोध उत्पन्न हो गया हो तो संयुक्त अधिवेशन का प्रावधान है।
अनुच्छेद-110 : धन विधेयक को इसमें परिभाषित किया गया है।
अनुच्छेद-111 : संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति के पास जाता है। राष्ट्रपति उस विधेयक को सम्मति प्रदान कर सकता है या अस्वीकृत कर सकता है। वह संदेश के साथ या बिना संदेश के संसद को उस पर पुनर्विचार के लिए भेज सकता है, पर यदि दुबारा विधेयक को संसद द्वारा राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है तो वह इसे अस्वीकृत नहीं करेगा।
अनुच्छेद-112 : प्रत्येक वित्तीय वर्ष हेतु राष्ट्रपति द्वारा संसद के समक्ष बजट पेश किया जायेगा।
अनुच्छेद-123 : संसद के अवकाश (सत्र नहीं चलने की स्थिति) में राष्ट्रपति को अध्यादेश जारी करने का अधिकार।
अनुच्छेद-124 : इसके अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय के गठन का वर्णन है।
अनुच्छेद-129 : सर्वोच्च न्यायालय एक अभिलेख न्यायालय है।
अनुच्छेद-148 : नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जायेगी।
अनुच्छेद-163 : राज्यपाल के कार्यों में सहायता एवं सुझाव देने के लिए राज्यों में एक मंत्रिपरिषद् एवं इसके शीर्ष पर मुख्यमंत्री होगा, पर राज्यपाल के स्वविवेक संबंधी कार्यों में वह मंत्रिपरिषद् के सुझाव लेने के लिए बाध्य नहीं होगा।
अनुच्छेद-169 : राज्यों में विधान परिषदों की रचना या उनकी समाप्ति विधानसभा द्वारा बहुमत से पारित प्रस्ताव तथा संसद द्वारा इसकी स्वीकृति से संभव है।
अनुच्छेद-200 : राज्यों की विधायिका द्वारा पारित विधेयक राज्यपाल के समक्ष प्रस्तुत किया जायेगा। वह इस पर अपनी सम्मति दे सकता है या इसे अस्वीकृत कर सकता है। वह इस विधेयक को संदेश के साथ या बिना संदेश के पुनर्विचार हेतु विधायिका को वापस भेज सकता है, पर पुनर्विचार के बाद दुबारा विधेयक आ जाने पर वह इसे अस्वीकृत नहीं कर सकता। इसके अतिरिक्त वह विधेयक को राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भी भेज सकता है।
अनुच्छेद-213 : राज्य विधायिका के सत्र में नहीं रहने पर राज्यपाल अध्यादेश जारी कर सकता है।
अनुच्छेद-214 : सभी राज्यों के लिए उच्च न्यायालय की व्यवस्था होगी।
अनुच्छेद-226 : मूल अधिकारों के प्रवर्तन के लिए उच्च न्यायालय को लेख जारी करने की शक्तियाँ।
अनुच्छेद-233 : जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा उच्च न्यायालय के परामर्श से की जायेगी।
अनुच्छेद-235 : उच्च न्यायालय का नियंत्रण अधीनस्थ न्यायालयों पर रहेगा |
अनुच्छेद-239 : केंद्र शासित प्रदेशों का प्रशासन राष्ट्रपति द्वारा होगा | वह यदि उचित समझे तो बगल के किसी राज्य के राज्य पाल को इसके प्रसासन का दायित्व सौप सकता है या एक प्रसाशक की नियुक्ति कर सकता है |
अनुच्छेद-245 : संसद संपूर्ण देश या इसके किसी हिस्से के लिए तथा राज्य विधानपाका अपने राज्य इसके किसी हिस्से के लिए कानून बना सकती है।
अनुच्छेद-262 : अंतरराज्यीय नदियों या नदी घाटियों के जल के वितरण एवं नियंत्रण से संबंधित विवादों के लिए संसद विधि द्वारा निर्णय कर सकती है।
अनुछेद-263 : केन्द्र राज्य संबंधों में विवादों का समाधान करने एवं परस्पर सहयोग के क्षेत्रों के विकास के उद्देश्य से राष्ट्रपति एक अंतरराज्यीय परिषद् की स्थापना करता है।
अनुच्छेद-266 : भारत की संचित निधि, जिसमें सरकार को सभी मौद्रिक विष्टिय एकत्र रहेंगी, विधिसम्मत प्रक्रिया के बिना इससे कोई भी राशि नहीं निकाली जा सकती है।
अनुच्छेद-267: संसद विधि द्वारा एक आकस्मिक निधि स्थापित कर सकती है, जिसमें अकस्मात उत्पन्न परिस्थितियों के लिए राशि एकत्र की जायेगी |
अनुच्छेद-275 : केंद्र द्वारा राज्यों को सहायक अनुदान दिये जाने का प्रावधान |
अनुच्छेद-280 : राष्ट्रपति हर पाँचवें वर्ष एक वित्त आयोग की स्थापना करेगा, जिसमें अध्यक्ष के अतिरिक्त चार अन्य सदस्य होंगे तथा जो राष्ट्रपति के पास केंद्र एवं राज्यों के बीच करों के वितरण के संबंध में अनुशंसा करेगा।
अनुच्छेद-300 क : राज्य किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वचित नहीं करेगा। पहले यह प्रावधान मूल अधिकारों के अंतर्गत था, पर संविधान के 44वें संशोधन, 1978 द्वारा इसे अनुच्छेद 300 (क) में एक सामान्य वैधानिक (कानूनी अधिकार के रूप में अवस्थित किया गया।
अनुच्छेद-312 : राज्यसभा विशेष बहुमत द्वारा नई अखिल भारतीय सेवाओं की स्थापना की अनुशंसा कर सकती है।
अनुच्छेद-315 : संघ एवं राज्यों के लिए एक लोक सेवा आयोग की स्थापना की जायेगी।
अनुच्छेद-324 : चुनावों के पर्यवेक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण संबंधी समस्त शक्तियाँ चुनाव आयोग में निहित रहेंगी।
अनुच्छेद-326 : लोकसभा तथा विधान सभाओं में चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर होगा।
अनुच्छेद-330 : लोकसभा में अनुसूचित जातियों एवं के लिए आरक्षण ।
अनुच्छेद- 331 : आंग्ल - भारतीय समुदाय के लोगों का राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा में मनोनयन संभव है, यदि वह समझे कि उनका उचित प्रतिनिधित्व नहीं है।
अनुच्छेद-332 : अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों का विधानसभाओं में आरक्षण का प्रावधान।
अनुच्छेद-333 : आंग्ल भारतीय समुदाय के लोगों का विधानसभाओं में मनोनयन ।
अनुच्छेद-335 : अनुसूचित जातियों, जनजातियों एवं पिछड़े वर्गों के लिए विभिन्न सेवाओं में पदों पर आरक्षण का प्रावधान।
अनुच्छेद 338 : राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग |
अनुच्छेद-338 (क) : राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग |
अनुच्छेद-340 : पिछड़े वर्गों की दशाओं के अन्वेषण के लिए आयोग की नियुक्ति ।
अनुच्छेद-343 : संघ की आधिकारिक भाषा देवनागरी लिपि में लिखी गई 'हिन्दी' होगी।
अनुच्छेद-347: यदि किसी राज्य में पर्याप्त संख्या में लोग किसी भाषा को बोलते हों और उनकी आकांक्षा हो कि उनके द्वारा बोली जाने वाली भाषा को मान्यता दी जाए तो इसकी अनुमति राष्ट्रपति दे सकता है।
अनुच्छेद-351 : यह संघ का कर्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार एवं उत्थान करे ताकि वह भारत की मिश्रित संस्कृति के अंगों के लिए अभिव्यक्ति का माध्यम बने।
अनुच्छेद-352 : राष्ट्रपति द्वारा आपात स्थिति की घोषणा, यदि वह समझता हो कि भारत या उसके किसी भाग की सुरक्षा युद्ध, बाह्य आक्रमण या सैन्य विद्रोह के फलस्वरूप खतरे में है।
अनुच्छेद-355 : इसमें बाह्य आक्रमण और आंतरिक अशांति से राज्य की रक्षा करने का संघ का कर्तव्य का उल्लेख है।
अनुच्छेद-356 : यदि किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति को यह रिपोर्ट दी जाए कि उस राज्य में संवैधानिक तंत्र असफल हो गया है तो वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है।
अनुच्छेद-360 : यदि राष्ट्रपति यह समझता है कि भारत या इसके किसी भाग की वित्तीय स्थिरता एवं साख खतरे में है तो वह वित्तीय आपात स्थिति की घोषणा कर सकता है।
अनुच्छेद-365 : यदि कोई राज्य केन्द्र द्वारा भेजे गये किसी कार्यकारी निर्देश का पालन करने में असफल रहता है तो राष्ट्रपति द्वारा यह समझा जाना विधि सम्मत होगा कि उस राज्य में संविधान तंत्र के अनुरूप प्रशासन चलने की स्थिति नहीं है और वहाँ राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है।
अनुच्छेद-368 : संसद को संविधान के किसी भी भाग का संशोधन करने का अधिकार है।
अनुच्छेद-370 : इसके अंतर्गत जम्मू और कश्मीर की विशेष स्थिति का वर्णन है।
अनुच्छेद-371 : कुछ राज्यों के विशेष क्षेत्रों के विकास के लिए राष्ट्रपति बोर्ड स्थापित कर सकता है, जैसे महाराष्ट्र, गुजरात, नगालैंड, मणिपुर इत्यादि ।
अनुच्छेद-394 क: राष्ट्रपति अपने अधिकार के अंतर्गत इस संविधान का हिन्दी भाषा में अनुवाद करायेगा।
अनुच्छेद-395 : भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947, भारत सरकार अधिनियम, 1953 तथा इनके अन्य पूरक अधिनियमों को, जिसमें प्रिवी कौंसिल क्षेत्राधिकार अधिनियम शामिल नहीं है, यहाँ रदद् किया जाता है।
भारतीय संविधान की अनुसूची
प्रथम अनुसूची : इसमें भारतीय संघ के घटक राज्यों (29 राज्य) एवं संघशासित (सात ) क्षेत्रों का उल्लेख है।
नोट : संविधान के 69वें संशोधन के द्वारा दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का दर्जा दिया गया है।
द्वितीय अनुसूची : इसमें भारतीय राज-व्यवस्था के विभिन्न पदाधिकारियों (राष्ट्रपति, राज्यपाल, लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, राज्यसभा के सभापति एवं उपसभापति, विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, विधान परिषद् के सभापति एवं उपसभापति, उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों और भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक आदि) को प्राप्त होने वाले वेतन, भत्ते और पेंशन आदि का उल्लेख किया गया है।
तृतीय अनुसूची : इसमें विभिन्न पदाधिकारियों (मंत्री, उच्चतम एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों) द्वारा पद-ग्रहण के समय ली जाने वाली शपथ का उल्लेख है।
चौथी अनुसूची : इसमें विभिन्न राज्यों तथा संघीय क्षेत्रों की राज्यसभा में प्रतिनिधित्व का विवरण दिया गया है ।
पाँचवीं अनुसूची : इसमें विभिन्न अनुसूचित क्षेत्रों और अनुसूचित जनजाति के प्रशासन और नियंत्रण के बारे में उल्लेख है।
छठी अनुसूची : इसमें असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम राज्यों के जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन के बारे में प्रावधान है।
सातवीं अनुसूची : इसमें केन्द्र एवं राज्यों के बीच शक्तियों के बँटवारे के बारे में दिया गया है तथा इसी अनुसूची में सरकारों द्वारा शुल्क एवं कर लगाने के अधिकारों का उल्लेख है। इसके अन्तर्गत तीन सूचियाँ हैं संघ सूची, राज्य सूची एवं समवर्ती सूची।
1. संघ सूची : इस सूची में दिये गये विषय पर केन्द्र सरकार कानून बनाती है। संविधान के लागू होने के समय इसमें 97 विषय थे। (वर्तमान में 100 विषय] संघ सूची के कुछ महत्वपूर्ण विषय हैं: 10 देश की प्रतिरक्षा, विदेशी मामले, युद्ध एव शांति, रेल, डाक तथा तार, मुद्रा बैंकिंग, परमाणु शक्ति आदि ।
2. राज्य सूची : इस सूची में दिये गये विषय पर राज्य सरकार कानून बनाती है। राष्ट्रीय हित से संबंधित होने पर केन्द्र सरकार भी कानून बना सकती है। संविधान के लागू होने के समय इसके अन्तर्गत 66 विषय थे। [वर्तमान में 61 विषय] राज्य सूची में शामिल कुछ विषय हैं-शांति और व्यवस्था, पुलिस, जेल, स्थानीय शासन, कृषि, जन-स्वास्थ्य, राज्य के अंदर होने वाला व्यापार न्याय विभाग आदि ।
3. समवर्ती सूची : इसके अन्तर्गत दिये गये विषय पर केन्द्र एवं राज्य दोनों सरकारें कानून बना सकती हैं। परन्तु कानून के विषय समान होने पर केन्द्र सरकार द्वारा बनाया गया कानून ही मान्य होता है। राज्य सरकार द्वारा बनाया गया कानून केन्द्र सरकार के कानून बनाने के साथ ही समाप्त हो जाता है। संविधान के लागू होने के समय समवर्ती सूची में 47 विषय थे। वर्तमान में 52 विषय] समवर्ती सूची के कुछ प्रमुख विषय हैं: दीवानी और फौजदारी कानून एवं प्रक्रिया, विवाह तथा तलाक, शिक्षा, आर्थिक नियोजन, बिजली, समाचार पत्र, श्रमिक संघ, वन आदि ।
आठवीं अनुसूची : इसमें भारत की 22 भाषाओं का उल्लेख किया गया है। मूल रूप से 8वीं अनुसूची में 14 भाषाएँ थीं, 1967 ई. (21 वाँ संशोधन) में सिंधी को, 1992 ई. (71वाँ संशोधन) में कोंकणी, मणिपुरी तथा नेपाली को और 2003 ई. (92वाँ संशोधन) में मैथिली, संथाली, डोगरी एवं बोडो को 8वीं अनुसूची में शामिल किया गया।
नौवीं अनुसूची : संविधान में यह अनुसूची प्रथम संविधान संशोधन अधिनियम, 1951 ई. के द्वारा जोड़ी गई। इसके अन्तर्गत राज्य द्वारा सम्पत्ति के अधिग्रहण की विधियों का उल्लेख किया गया है। इस अनुसूची में सम्मिलित विषयों को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है। वर्तमान में इस अनुसूची में 284 अधिनियम हैं।
नोट : अब तक यह मान्यता थी कि संविधान की नौवीं अनुसूची में सम्मिलित कानूनों की न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती। 11 जनवरी, 2007 ई. के संविधान पीठ के एक निर्णय द्वारा यह स्थापित किया गया है कि नौवीं अनुसूची में सम्मिलित किसी भी कानून को इस आधार पर चुनौती दी जा सकती है कि वह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है तथा उच्चतम न्यायालय इन कानूनों की समीक्षा कर सकता है।
दसवीं अनुसूची : यह संविधान में 52वें संशोधन, 1985 ई. के द्वारा जोड़ी गई है। इसमें दल-बदल से संबंधित प्रावधानों का उल्लेख है।
ग्यारहवीं अनुसूची : यह अनुसूची संविधान में 73वें संवैधानिक संशोधन (1993) के द्वारा जोड़ी गयी है। इसमें पंचायतीराज संस्थाओं को कार्य करने के लिए 29 विषय प्रदान किये गये हैं।
बारहवीं अनुसूची : यह अनुसूची संविधान में 74वें संवैधानिक संशोधन (1993) के द्वारा जोड़ी गई है। इसमें शहरी क्षेत्र की स्थानीय स्वशासन संस्थाओं को कार्य करने के लिए 18 विषय प्रदान किये गये हैं।