उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने हेतु कई आन्दोलन हुए। उत्तराखंड पृथक राज्य का आंदोलन में महिलाओं की भूमिका अहम थी। यह आंदोलन उत्तराखंड के प्रमुख आंदोलन हैं जिनकी वजह से उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश से अलग हो एक राज्य बन पाया। उत्तराखंड की महिलाओं ने वन आन्दोलनों में भी अहम भूमिका निभाई।
उत्तराखंड को एक अलग राज्य का दर्ज देने की मांग भारत की आजादी से पहले भी उठती रही थी। अंग्रेज शासन में भी कई जगह अधिवेशन करके अलग राज्य की मांग उठाई गयी थी। परंतु आजादी के पश्चात भी उत्तराखंड को अलग राज्य का दर्जा मिलने में कई वर्ष लग गए। और कई वर्षों के संघर्ष और कई बलिदानों के बाद 9 नवंबर सन 2000 को उत्तराखंड को अलग राज्य का दर्जा मिला। यह भी पढ़ें : इतिहास की प्रमुख घटनाएं
उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने हेतु किये गए आन्दोलन
- हिमालय की गोद में स्थित गढ़वाल और कुमाऊँ क्षेत्र को मिलाकर एक पृथक राज्य बनाने सम्बंधी मांग सर्वप्रथम 5-6मई 1938 को श्रीनगर (गढ़वाल) में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में उठाई गई थी। स्थानीय नेताओं के इस मांग को अधिवेशन की अध्यक्षता कर रहें जवाहर लाल नेहरू ने समर्थन किया था।
- 1938 में पृथक राज्य की मांग हेतु श्रीदेव सुमन में दिल्ली में 'गढ़देश सेवा संघ' नाम से एक संगठन बनाया। बाद में इस संगठन का नाम 'हिमालय सेवा संघ' हो गया। यह भी पढ़ें : उत्तराखण्ड राज्य निर्माण आन्दोलन महत्त्वपूर्ण नोट्स
- 1946 में हल्द्वानी में बद्रीदत्त पांडे की अध्यक्षता में हुए कांग्रेस के एक सम्मेलन में उत्तरांचल के पर्वतीय भू-भाग को विशेष वर्ग में रखने की मांग उठाई गई। इसी सम्मेलन में अनुसूयाप्रसाद बहुगुणा ने गढ़वाल-कुमाऊँ के भू-भाग को एक अलग क्षेत्रीय भौगोलिक इकाई के रूप में गठित करने की मांग की थी। संयुक्त प्रांत के तत्कालीन प्रीमियर गोविंद बल्लभ पंत ने इन मांगों को ठुकरा दिया था।
- 1950 में हिमाचल और उत्तरांचल को मिलाकर एक वृहद् हिमालयी राज्य बनाने के उद्देश्य से पर्वतीय विकास जन समिति नामक संगठन का गठन किया गया।
- 1955 में फजल अली आयोग ने उ.प्र. के पुनर्गठन की बात इस क्षेत्र के पृथक राज्य बनाने के दृष्टिकोण से की थी, लेकिन उ.प्र. के नेताओं ने इसे स्वीकार नहीं किया।
- 1957 में टिहरी रियासत के अपदस्थ नरेश मानवेन्द्रशाह ने पृथक राज्य आंदोलन को अपने स्तर से शुरू किया।
- 24 व 25 जून 1967 में रामनगर में आयोजित सम्मेलन में पर्वतीय राज्य परिषद् का गठन किया गया। इसके अध्यक्ष दया कृष्ण पांडे, उपाध्यक्ष गोविन्द सिंह मेहरा और महासचिव नारायण दत्त सुंद्रियाल थे।
- 1969 में तत्कालीन प्रदेश सरकार ने इस क्षेत्र के विकास को ध्यान में रखते हुए पर्वतीय विकास परिषद का गठन की।
- 3 अक्टूबर 1970 को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव पी. सी. जोशी ने कुमाऊँ राष्ट्रीय मोर्चा का गठन किया और पृथक उत्तराखण्ड राज्य की माँग दुहराई।
- 1972 में नैनीताल में गठित उत्तरांचल परिषद के कार्यकर्ताओं ने नई दिल्ली स्थित वोट क्लब पर धरना किया। पुनः 1973 में इस परिषद ने दिल्ली चलों का नारा दिया और चमोली के विधायक प्रताप सिंह नेगी के नेतृत्व में बद्रीनाथ से वोट क्लब (दिल्ली) तक की पदयात्रा की गई।
- 1976 में उत्तराखण्ड युवा परिषद का गठन किया गया। परिषद के सदस्यों ने व्यापक रूप से आन्दोलन चलाया।
- 1978 में इसके सदस्यों ने संसद का भी घेराव करने की कोशिश की और गिरफ्तारियां दी।
- 1979 में जनता पार्टी सरकार के सांसद श्रेपन सिंह नेगी के नेतृत्व में उत्तरांचल राज्य परिषद् की स्थापना की गई और 23 जुलाई को वोट क्लब पर रैली का आयोजन हुआ। प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को अलग राज्य की मांग के लिए ज्ञापन दिया गया।
- 24-25 जुलाई, 1979 को मंसूरी में आयोजित पर्वतीय जन विकास सम्मेलन में उत्तराखण्ड क्रान्ति दल का गठन किया गया। इसके प्रथम अध्यक्ष कुमाऊँ विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलत डॉ. देवीदत्त पंत बनाए गये। इस दल का केवल एक लक्ष्य राज्य की समस्याओं का निराकरण करते हुए 8 पर्वतीय जिलों को मिलाकर अलग राज्य की स्थापना करना था।
- 1984 में ऑल इंडिया स्टूडेन्ट फेडरेशन ने राज्य की मांग को लेकर गढ़वाल में 900 किमी. की साइकिल यात्रा के माध्यम में जन जागरूकता फैलाया।
- 1987 में उत्तराखण्ड क्रांतिदल का विभाजन हो और दल की बागडोर युवा नेता काशी सिंह ऐरी के हाथ में आ गई। इस दल के नेतृत्व में 9 मार्च को पौड़ी में आयोजित रैली में 10,000 से अधिक लोगों ने भाग लिया।
- 9 सितम्बर को दल ने उत्तराखण्ड बंद का आयोजन किया फिर 23 नवम्बर को वोट दिल्ली में विशाल प्रदर्शन किया और राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन के द्वारा पहली बार हरिद्वार को उत्तराखण्ड में शामिल करने की मांग की गई।
- 1987 में ही 23 अप्रैल को एक विशेष घटना तब घटी उक्रांद उपाध्यक्ष त्रिवेन्द्र पंवार ने राज्य की मांग को लेकर संसद में एक पत्र बम फेंका। इसके लिए उन्हें भारी यातनाएं दी गयी।
- 1987 में ही भाजपा ने लालकृष्ण आडवाणी की अध्यक्षता में अल्मोड़ा के पार्टी सम्मेलन में उत्तर प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र को अलग राज्य का दर्जा देने की मांग को स्वीकार किया गया, लेकिन प्रस्तावित राज्य का नाम उत्तराखण्ड के बजाए उत्तरांचल स्वीकार किया गया।
- 1988 में भाजपा के शोवन सिंह जीमा की अध्यक्षता में 'उत्तरांचल उत्थान परिषद' का गठन किया गया।
- जनवरी 1989 में सभी संगठनों ने मिलकर आंदोलन चलाने के लिए 'उत्तरांचल संयुक्त संघर्ष समिति का गठन किया और 11-12 फरवरी को रैली आयोजित किया।
- 1990 में जसवंत सिंह विष्ट ने उत्तराखंड क्रांति दल के विधायक के रूप में उ. प्र. विधानसभा में पृथक राज्य का पहला प्रस्ताव रखा।
- 1991 के चुनावों में भाजपा ने पृथक राज्य की स्थापना को अपने घोषणा पत्र में शामिल किया और वायदे के अनुरूप 20 अगस्त 1991 को प्रदेश की भाजपा सरकार ने पृथक उत्तरांचल का प्रस्ताव केन्द्र सरकार के पास भेज दिया, लेकिन केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने इस पर कोई निर्णय नहीं लिया।
- जुलाई, 1992 में उत्तराखण्ड क्रांतिदल ने पृथक राज्य के संबंध में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज जारी किया तथा गैरसैंण को प्रस्तावित राज्य की राजधानी घोषित कर दिया। इस दस्तावेज को उत्तराखण्ड क्रांति दल का पहला ब्लू प्रिंट माना गया। एक निर्णय के तहत 21 जुलाई, 1992 को काशी सिंह ऐरी ने गैरसैंण में प्रस्तावित राजधानी की नींव डाली और उसका नाम चंद्रनगर घोषित किया।
- जनवरी 1993 में मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने मंत्री रमाशंकर कौशिक की अध्यक्षता में उत्तराखंड राज्य की संरचना और राजधानी पर विचार करने के लिए एक कैबिनेट समिति का गठन किया।
- कौशिक समिति ने मई 1994 में अपना रिपोर्ट प्रस्तुत किया। रिपोर्ट में तत्कालीन पर्वतीय जिलों को मिलाकर पृथक उत्तराखण्ड राज्य और उसकी राजधानी गैरसैंण में बनाने की सिफारिश किया गया।
- मुलायम सिंह यादव सरकार ने कौशिक समिति की सिफारिशों को 21 जून, 1994 को स्वीकार कर लिया और अगस्त, 1994 में 8 पहाड़ी जिलों को मिलाकर पृथक उत्तराखंड राज्य के गठन से सम्बंधित प्रस्ताव को विधानसभा में सर्वसम्पति से पास कर केन्द्र सरकार के पास भेजा गया।
- 1994 में ही विनोद बड़थ्वाल की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया था। इस कमेटी को बुद्धिजीवियों और गैर राजनीतिक लोगों के विचारों के आधार पर पृथक उत्तराखण्ड राज्य की अनिवार्यता पर सुझाव देना था।
- 1994 के जून माह में मुलायम सिंह यादव सरकार ने सरकारी नौकरियों एवं शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण की नयी व्यवस्था लागू की, जिसमें कुल सीटों के 50% सीट (27% BC + 21% SC + 2% ST ) आरक्षित होने की व्यवस्था थी नई आरक्षण नीति में अन्य पिछड़ी जातियों के आरक्षण के विरुद्ध राज्य में आन्दोलन शुरू हो गया। पौढ़ी के वयोवृद्ध नेता इंद्रमणि बड़ोनी (उत्तराखण्ड के गांधी) अपने 7 सहयोगियों के साथ 7 अगस्त को आमरण अनशन पर बैठ गये। अनशनकारियों पर पुलिस ने लाठी चार्ज किया। 15 अगस्त को काशी सिंह ऐरी के नेतृत्व में नैनीताल में आमरण अनशन शुरू हुआ।
- 1 सितम्बर 1994 को ऊधमसिंह नगर के खमीटा में पुलिस द्वारा छात्रों तथा पूर्व सैनिकों की रैली पर गोली चलाने से 25 लोग मारे गये। इस घटना के दूसरे दिन मंसूरी में झूलाघर पर विरोध प्रकट करने के लिए आयोजित रैली में उत्तेजित लोगों ने पीएसी तथा पुलिस पर हमला कर दिया। इस घटना में पुलिस उपाधीक्षक उमाकांत त्रिपाठी मारे गये। फिर पुलिस द्वारा गोली चलाने पर 7 आंदोलनकारी मारे गये। इनमें दो महिलाएं हंसा धनाई व बेलमती चौहान भी मरी थीं.
- 7 सितम्बर, 1994 को एक सर्वदलीय बैठक में 27% आरक्षण को उत्तराखण्ड में लागू करने पर सहमति हुई। इसके बाद राज्य के छात्रों ने 18 सितम्बर को रामनगर में एक सम्मेलन किया और सम्मेलन के दौरान छात्र युवा संघर्ष समिति का गठन किया गया। इस सम्मेलन में 1-2 अक्टूबर को दिल्ली में प्रदर्शन करने का निश्चय किया गया था।
- 2 अक्टू,1994 को दिल्ली में होने वाली रैली में भाग लेने जा रहे आंदोलनकारियों पर रामपुर तिराहे (मुजफ्फरनगर) पर उत्तर प्रदेश पुलिस ने अमानुषिक अत्याचार किया। उसके बाद मुजफ्फरनगर में महिलाओं के साथ पुलिस कर्मियों ने दुराचार किया और पुलिस फायरिंग में 6 लोगों की मृत्यु हो गई। इस कृत्य की क्रूर शासक की क्रूर साजिश कहकर पूरे विश्व में निन्दा हुई। इसके विरोध में 3 अक्टूबर, 1994 को पूरे उत्तराखंड क्षेत्र में हिंसक प्रदर्शन हुए और 7 लोग शहीद हो गए.
- 7 दिसम्बर 1994 को उत्तराचल प्रदेश संघर्ष समिति के अध्यक्ष सांसद भुवन सिंह खंडूरी के संयोजन में दिल्ली में भाजपा के एक रैली का आयोजन और भाजपा सदस्यों द्वारा संसद के दोनोंसदनों से वाकआउट किया गया
- 1995 में 25 जनवरी को उत्तरांचल आंदोलन संचालन समिति ने उच्चतम न्यायालय से राष्ट्रपति भवन तक 'संविधान बचाओं यात्रा निकाली.
- 1995 में 10 नवम्बर को श्रीनगर स्थित श्रीयंत्र टापू पर आमरण अनशन पर बैठे आंदोलनकारियों पर पुलिस लाठी चार्ज से यशोधार बेंजवाल और राजेश रावत की मौत.
- 15 अगस्त 1996 को लालकिले की प्राचीर से तत्कालीन प्रधानमंत्री एच. डी. देवगौड़ा ने उत्तराखंड राज्य का निर्माण करने की घोषणा की.
- 1998 में केन्द्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने राष्ट्रपति के माध्यम से उत्तराखंड राज्य सम्बन्धी विधेयक उत्तर प्रदेश विधान सभा को सहमति के लिए भेजा इस विधेयक में कुल 26 संशोधन करने के बाद उ.प्र. सरकार ने पुनः केन्द्र को भेज दिया जिसे भाजपा सरकार ने 22 दिसम्बर को लोकसभा में पेश किया, लेकिन सरकार के गिर जाने से पास न हो सका।
- भाजपा के सत्ता में पुनः आ जाने के बाद इस विधेयक को एक बार फिर से उ.प्र. सरकार को भेजा गया और उ.प्र. सरकार द्वारा इसे पास कर केन्द्र को भेजने के बाद 27 जुलाई 2000 को उ.प्र. पुनर्गठन विधेयक 2000 के नाम से लोकसभा में प्रस्तुत किया गया।
राज्य निर्माण आन्दोलन के शहीद |
8 अगस्त, 1994 को पौड़ी में जीतबहादुर गुरंग शहीद हुए
· • 10 नव. 1995 को श्रीयंत्र टापू. श्रीनगर में यशोधरा वैजवाल व राजेश रावत |
1 अगस्त 2000 को विधेयक लोकसभा में व 10 अगस्त को राज्यसभा में पारित किया गया और 28 अगस्त को राष्ट्रपति के. आर. नारायणन ने उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक को अपनी मंजूरी प्रदान की। इसे सरकारी गजट में कानून संख्या 28 के रूप में इंगित किया गया।
9 नवम्बर,2000 को देश की 27 वें राज्य के रूप में (उ.प्र.) के 13 उत्तरी- प. जिलों को काटकर) उत्तरांचल राज्य का गठन किया गया और देहरादून को इसका अस्थाई राजधानी बनाया गया,उसी दिन प्रदेश के पहले अंतरिम मुख्यमंत्री श्री नित्यानंद स्वामी ने पद एवं गोपनीयता की शपथ ली।
दिसम्बर 2006 में उत्तरांचल (नाम परिवर्तन) विधेयक 2006 संसद के दोनों सदनों मेंपारित करने के बाद नाम परिवर्तन की आधिकारिक अधिसूचना 29 दिसम्बर 2006 को जारी की गई, जिसके अनुसार 1 जनवरी 2007 से इसका नाम उत्तराखंड हो गया।
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राज्य आंदोलन के दौरान गठित संगठन
कुमाऊँ परिषद - उत्तराखण्ड में सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक व शैक्षणिक समस्याओं को लेकर गोविन्द वल्लभपंत, बद्रीदत पाण्डेय हरगोविन्द पंत आदि नेताओं द्वारा इस परिषद का गठन किया गया था, लेकिन 1926 में इसका विलय कांग्रेस में हो गया था।
गढ़देश सेवा संघ- अलग राज्य के उद्देश्य को लेकर 1938 में दिल्ली में इस संघ का गठन सुमन द्वारा किया गया। बाद में इसका नाम हिमालय सेवा संघ हो गया
गढ़वाल जागृत संस्था - 1939 में कांग्रेस द्वारा पौड़ी मेंइस संस्था का गठन किया गया। प्रताप सिंह नेगी और उमानंद बड़थ्वाल इस संस्था के प्रमुख थे। पर्वतीय विकास जन समिति कांगड़ा से अल्मोड़ा तक एक ही हिमालयी राज्य की स्थापना के लिए इस समिति का गठन 1950 में नयी दिल्ली में किया गया था
पर्वतीय राज्य परिषद-25 जून 1967 को रामनगर के जनसभा में एक पृथक प्रशासनिक इकाई के गठन का प्रस्ताव पारित किया गया और प्रस्ताव के कार्यान्वयन हेतु दयाकृष्ण पाण्डे की अध्यक्षता में इस परिषद का गठन किया गया।
1973 में इस संगठन का पुनर्गठन किया गया और दो सांसदो (प्रताप सिंह नेगी और नरेन्द्र सिंह बिष्ट) को इसमें शामिल करते हुए। इसका नाम पृथक पर्वतीय राज्य परिषद कर दिया गया। कुमाऊँ राष्ट्रीय मोर्चा नये राज्य के उद्देश्य को लेकर 3 अक्टूबर 1970 को कामरेड पी. सी. जोशी द्वारा यह संगठन बनाया गया।
उत्तरांचल परिषद् - 7 जून 1972 को नैनीताल में इस परिषद का गठन स्थानीय समस्याओं पृथक राज्य के लिए संघर्ष करने के उद्देश्य से किया गया था
उत्तराखंड क्रान्ति दल - 24 और 25 जुलाई 1979 को मसूरी के सम्मेलन में इस दल की स्थापना की गयी। इसके प्रथम अध्यक्ष डॉ. देवीदत्त पंत थे
उत्तरांचल उत्थान परिषद् - 30-31 मई 1988 को शोबन सिंह जीना की अध्यक्षता में इस परिषद् का गठन किया गया
उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति - 11-12 जनवरी 1989 को जनसंघर्ष वाहिनी, उत्तराखण्ड जन परिषद, उत्तराखण्ड रक्षा मंच और युवा जनता दल ने संयुक्त रूप से दिल्ली में इस संघर्ष समिति का गठन किया। द्वारिका प्रसाद उनियाल समिति के प्रमुख चुने गये थे
उत्तराखण्ड मुक्ति मोर्चा - वामपंथी धारा जनवरी 1991 में इस मोर्चा का गठन किया
संयुक्त उत्तराखंड राज्य मोर्चा - बहादुर राम टम्टा द्वारा संयुक्त उत्तराखण्ड राज्य मोर्चा का गठन अप्रैल, 1994 में किया गया। इसका उद्देश्य राज्य निर्माण में सहयोग करना था
उत्तराखण्ड पीपुल्स फ्रंट (यू.पी.एफ.) - उत्तराखंड पीपुल्स फ्रंट का गठन 16-17 अप्रैल 1994 को किया गया।
उत्तराखण्ड छात्र युवा संघर्ष समिति - इसका गठन 18 सितम्बर 1994 को किया गया।
स्थाई राजधानी गैरसैंण में बनाने के प्रयास:-
- ब्रिटिश गढ़वाल के चाँदपुर परगने की लोहबा पट्टी ही वर्तमान गैरसैंण है इस समय यह चमोली की एक तहसील और विकासखण्ड है,यह दूधातोली और व्यासी पर्वत श्रृंखलाओं से घिरा हुआ है और लगभग सम्पूर्ण राज्य के केन्द्र में स्थित है.60,70 वर्ग किमी. में फैली इस समतल घाटी की समुद्रतल से ऊंचाई लगभग 5360 फीट है। यहाँ से होकर आटागाड़, पश्चिमी एवं पूर्वी नयार तथा पश्चिमी रामगंगा आदि नदियाँ बहती हैं। साथ ही यहाँ स्थानस्थान पर प्राकृतिक जल स्रोत भी हैं,इस क्षेत्र के चारों तरफ मेवाड़, बाँदपुर गढ़ी और बधाण गढ़ी (ग्वालदम) आदि गढ़ियां स्थित हैं,इस क्षेत्र में बिनसर (विरणेश्वर महादेव ) जैसा धार्मिक स्थल और बेनीताल जैसा प्राकृतिक सौन्दर्य स्थल भी स्थित है।
- 24,25 जुलाई 1992 को उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के 14 वें महाधिवेशन में बडोनी व काशी सिंह ऐरी ने गैरसैंण का नाम वीर १ चन्द्रसिंह गढ़वाली के नाम पर चन्द्रनगर रखकर राज्य की राजधानी है घोषित किया और शिलान्यास भी किया था।
- 1993 में उ.प्र. सरकार द्वारा उत्तराखण्ड राज्य की संरचना और राजधानी पर विचार करने के लिए गठित कौशिक समिति ने । मई 1994 में अपने रिपोर्ट में राजधानी के लिए गैरसैंण की । सिफारिश की और इसका 68% लोगों से समर्थन किया था।
- सन् 1998 में गढ़वाल विश्वविद्यालय के मीडिया सेन्टर द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में 80 प्रतिशत जनता की राय गैरसैंण को राजधानी बनाने की थी।
- गैरसैंण के पक्ष में 24 सितम्बर,2000 को उत्तराखण्ड महिला मंच की विशाल रैली में विभिन्न संगठनों के 10 हजार से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया और इस मंच द्वारा आहूत करने पर 30 अक्टूबर को उत्तराखण्ड बंद पूर्णतः सफल रहा।
- 1अक्टू.2000 में इस मुद्दे पर उत्तराखण्ड संयुक्त संघर्ष समिति द्वारा देहरादून में खबरदार रैली का आयोजन किया गया था।
- 2004 में बाबा मोहन उत्तराखण्डी गैरसैंण सहित 13 स्थानों में कहीं भी राजधानी को स्थापना व कई मुद्दों को लेकर 38 दिनों के आमरण अनशन के बाद 8 अगस्त, 2004 को बेनीताल में शहीद हो गये थे।
भारतीय जनता पार्टी के पूर्व महामंत्री एवं भू. पू. मुख्यमंत्री भगतसिंह कोश्यारी ने 'उत्तरांचल प्रदेश' नामक पुस्तक में राजधानी के लिए गैरसैंण को उपयुक्त बताया गया है।
11 जनवरी 2001 को अंतरिम भाजपा सरकार ने स्थाई राजधानी चयन आयोग का गठन किया। कुछ ही समय बाद भंग हो जाने के बाद नवम्बर 2002 को कांग्रेस सरकार ने इसे पुनर्जीवित किया। 1 फरवरी 2003 से आयोग के अध्यक्ष जस्टिस वीरेन्द्र दीक्षित थे, जिन्होंने 17 अगस्त 2008 को मुख्यमंत्री को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इस रिपोर्ट में कई समस्याओं को गिनाकर गैरसैंण को खारिज कर दिया गया था और देहरादून को स्थाई राजधानी बनाने की सिफारिश की गई थी। ध्यातव्य है कि आयोग का कार्यकाल कुल मिलाकर 11 बार बढ़ाया गया था।
दीक्षित आयोग की रिपोर्ट आने के बाद भी राजधानी हेतु धरने-प्रदर्शनों का क्रम जारी रहा।
राजधानी विवाद पर विराम लगाते हुए 03 नव. 2012 को मुख्यमंत्री बहुगुणा ने गैरसैंण में मंत्रिपरिषद की बैठक आयोजित की और विधानसभा भवन बनाने का निर्णय लिया।
14 जनवरी, 2013 को मुख्यमंत्री बहुगुणा ने भराड़ीसैंण में प्रस्तावित द्वितीय विधानसभा हेतु गैरसैंण में औपचारिक शिलान्यास किया, जबकि 9 नव, 2013 को भराड़ीसैंण में भूमि पूजन कर भवन निर्माण शुरू कराया था।
FAQ 1 : उत्तराखंड का गठन कब हुआ ?
उत्तराखंड का गठन 9 नवम्बर 2000 को कई वर्षों के आन्दोलन के पश्चात भारत गणराज्य के सत्ताइसवें राज्य के रूप में किया गया था।
FAQ 2 : उत्तराखंड भारत का कौन सा राज्य है ?
उत्तराखंड भारत का 27वां राज्य है |
FAQ 3 : उत्तरांचल का नाम उत्तराखंड क्यों पड़ा ?
उत्तराखंड का निर्माण 9 नवम्बर 2000 को कई वर्षों के लंबे संघर्षों के बात भारत के सत्ताइसवें राज्य के रूप में किया गया था। 2000 से 2006 तक यह उत्तरांचल नाम से जाना जाता था लेकिन इस नाम को लेकर लोगों में रोष रहा। जनवरी 2007 में जनभावनाओं का सम्मान करते हुए इसका नाम बदलकर उत्तराखंड किया गया।