उत्तराखण्ड भौगोलिक रूप से वृहत्त हिमालय और गंगा के मैदान के बीच स्थित हैं | इस राज्य का ग्लोब पर विस्तार 28°43' से 31°27' उत्तरी अक्षांश तथा 77°34' से 81°02' पूर्वी देशान्तर मध्य है। अर्थात् इसका अक्षांशीय और देशान्तरीय विस्तार क्रमश: 2°44' और 3°28' है। राज्य के क्षेत्र को प्रायः कुमाऊं-गढ़वाल हिमालय या पूरे भारत के सन्दर्भ में मध्य हिमालय कहा जाता है। इस राज्य का आकार लगभग आयताकार है। पूर्व से पश्चिम तक राज्य की लम्बाई लगभग 358 किमी तथा उत्तर दक्षिण तक चौड़ाई लगभग 320 किमी हैं।
उत्तराखंड का भूगोल
राज्य सांख्यिकी डायरी 2015-16 के अनुसार राज्य का कुल क्षेत्रफल 53,483 वर्ग किमी है, जोकि भारत के कुल क्षेत्रफल का मात्र 1.69% है। क्षेत्रफल की दृष्टि से राज्य का सबसे बड़ा जिला चमोली (8030 वर्ग किमी.) व सबसे छोटा जिला चम्पावत (1766 हैं वर्ग किमी.) है।
तेलंगाना बनने के बाद क्षेत्रफल की दृष्टि से अब यह भारत का 19वां राज्य है।
राज्य के कुल क्षेत्रफल का 86.07% (46035 वर्ग किमी.) पर्वतीय व 13.93% (7448 वर्ग किमी.) मैदानीय है।
उत्तर में वृहत्त हिमालय, पश्चिम में टौंस नदी, दक्षिण-पश्चिम में शिवालिक श्रेणियां, दक्षिण-मध्य एवं दक्षिण-पूर्व में तराई क्षेत्र तथा पूर्व में काली नदी राज्य की प्राकृतिक सीमा बनाते हैं।
पूर्व में नेपाल, उत्तर में हिमालय पार (तिब्बत) चीन, उत्तर पश्चिम में हिमाचल प्रदेश तथा दक्षिण में उ.प्र. इसकी राजनैतिक सीमा बनाते हैं।
राज्य की पूर्वी और उत्तरी सीमा अंतर्राष्ट्रीय है, जो कि सामरिक दृष्टि से अति संवेदनशील है।
राज्य में उत्तर से प्रवेश करने के लिए ट्रांस हिमालय क्षेत्र (जैंक्सर पर्वतश्रेणी में) व महाहिमालय क्षेत्र में (हिमाद्रि क्षेत्र) में अनेक दर्रे या पास या धुरा या खाल हैं। 1962 से पूर्व इन्हीं गिरिद्वारों (दरों) के माध्यम से राज्य की शौका, जोहारी, जाड आदि जनजातियाँ तिब्बत के हुणिया आदि लोगों से व्यापार करते थे।
प्रदेश के दक्षिणी भाग में स्थित मैदान, भाभर व तराई से राज्य में प्रवेश करने के लिए शिवालिक श्रेणी में मोहन्डपास (देहरादून), तिम्ली (देहरादून), हरिद्वार, कोटद्वार ( पौढ़ी), द्वारकोट (ठाकुरद्वारा), चौकीघाट (नैनी.), चिलकिला ( ढिकुली, नैनी.), चोरगलिया (हल्द्वानी, नैनी.), बमौरी (काठगोदाम, नैनी.), ब्रह्मदेव ( टनकपुर, चम्पा.) आदि प्रमुख द्वार (घाटे) हैं।
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राज्य के 3 जिले (पिथौरागढ़, चम्पावत तथा ऊ.सि.न.) नेपाल से, 5 जिले (उ.सिं. नगर, नैनीताल, पौढ़ी, हरिद्वार तथा देहरादून) उ.प्र. से, 2 जिले (उत्तरकाशी तथा देहरादून) हिमाचल - प्रदेश से तथा 3 जिले (उत्तरकाशी, चमोली तथा पिथौरागढ़) चीन से स्पर्श करते हैं।
राज्य के सबसे उत्तरी व दक्षिणी जिले क्रमशः उत्तरकाशी व ऊधम सिंह नगर तथा सबसे पूर्वी व पश्चिमी जिले क्रमशः पिथौरागढ़ व देहरादून हैं।
पौढ़ी जिले की सीमाएं राज्य के 7 जिलों (नैनी., अल्मो., चमो., रूद्रप्रयाग, टिहरी, देहरादून तथा हरिद्वार) को स्पर्श करती हैं।
चमोली तथा अल्मोड़ा की सीमाएं 6-6 जिलों को स्पर्श करती हैं। देहरादून की 4 जिलों (हरि., पौढ़ी, टिह., उत्तरकाशी) को स्पर्श करती हैं।
राज्य में केवल 4 जिले (टिहरी, रूद्रप्रयाग, बागेश्वर व अल्मोड़ा) ऐसे है, जिनकी किसी अन्य राज्य या देश से नहीं स्पर्श करती है। अर्थात ये पूर्णतः आंतरिक जिले हैं।
सर्वाधिक लम्बे अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं वाला जिला या नेपाल से सर्वाधिक सीमा रेखा वाला जिला पिथौरागढ़ है।
चीन से भी सर्वाधिक सीमा रेखा वाला जिला पिथौरागढ़ ही है।
हिंदू धर्म के प्राचीन ग्रंथों में, केदारखंड (वर्तमान में गढ़वाल) और मानसखंड (वर्तमान में कुमाऊं) के संयुक्त क्षेत्र को उत्तराखंड या देवभूमि के रूप में उल्लेखित किया गया है। राज्य को प्राकृतिक रूप से नंदा देवी पर्वत, दो क्षेत्रों, कुमाऊँ और गढ़वाल में विभाजित किया गया है। देहरादून, राजधानी, रेलहेड और राज्य का सबसे बड़ा शहर है। नैनीताल वह जगह है जहाँ उत्तराखंड का उच्च न्यायालय स्थित है।
कुमाऊँ और गढ़वाल दोनों में सुंदर प्राकृतिक परिदृश्य हैं, जिनमें से कुछ के नाम के लिए चौखम्बा, भागीरथी, पिंडारी, नंदादेवी, सहस्त्रदल, केदारनाथ, गंगोत्री, मिलम, जोगिन की पर्वत चोटियों को लगाया गया है।
नंदादेवी, जिसकी ऊँचाई 25,643 फीट है, उत्तराखंड का सबसे ऊँचा पर्वत और सिक्किम में स्थित कंचंगुंगा के बाद भारत का दूसरा सबसे ऊँचा पर्वत है। 53483 किमी 2 के कुल क्षेत्र में से, उत्तराखंड राज्य उत्तराखंड, उत्तर भारत में स्थित उत्तर प्रदेश के उत्तर पश्चिमी जिलों से बनता है। यह पूर्व में नेपाल, उत्तर में तिब्बत, पश्चिम में हिमाचल प्रदेश, दक्षिण में उत्तर प्रदेश और उत्तर पश्चिम में हरियाणा की सीमा में है।
यूनेस्को द्वारा नामित एक विश्व विरासत स्थल, द वैली ऑफ फ्लॉवर्स, जो गढ़वाल में जोशीमठ के पास स्थित है।
हिमालयी राज्य की अवधारणा
देश के समग्र विकास के लिए चलाई जा रही योजनाओं के क्रियान्वयन के दौरान यह महसूस किया गया कि मैदानी क्षेत्रों की अपेक्षा पर्वतीय क्षेत्र विकास की दौड़ में पिछड़ रहें है। जब इसके कारणों की तलाश की गयी तो पाया गया कि व्यावहारिक दृष्टि से पर्वतीय क्षेत्रों का विकास अपेक्षाकृत कठिन है, क्योंकि दोनों क्षेत्रों के विकास की मूल आवश्यकताएं, प्राथमिकताएं, आधार, मानक तथा विकास की समझ भिन्न है। इन क्षेत्रों की भौगोलिक, आर्थिक, संसाधनिक, भाषायी तथा सामाजिक-सांस्कृतिक संरचना मैदानी क्षेत्रों से भिन्न है। अतः धीरे-धीरे हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों को विकास के लिए एक पृथक क्षेत्र के रूप में स्वीकार किया जाने लगा और पर्वतीय (हिमालयी) राज्य की अवधारणा का जन्म हुआ।
स्वतंत्रता के समय भारत में केवल एक ही (असम) हिमालयी राज्य था। अक्टू. 1947 में दूसरा हिमालयी राज्य जम्मू और कश्मीर बना। 1963 में नागालैण्ड तीसरा, 1971 में हिमाचल प्रदेश, 1972 में मेघालय-मणिपुर-त्रिपुरा, 1975 में सिक्किम, 1987 में अरूणाचल मिजोरम को हिमालयी राज्य घोषित किया गया। इसी क्रम में 2000 में उत्तराखण्ड को 11वाँ हिमालयी राज्य बनाया गया। लेकिन वर्तमान में भारत की संसद द्वारा 31 अक्टूबर 2019 से ‘जम्मू और कश्मीर राज्य‘ को दो केंद्र शासित प्रदेशों के रूप में ‘जम्मू और कश्मीर’ और ‘लद्दाख’ में बदलने से उत्तराखंड 10वाँ हिमालयी राज्य बन गया है।
उत्तराखंड का भौगोलिक विभाजन
धरातलीय विन्यास, स्तर शैलक्रम तथा उच्चावच स्वरूपों के आधार पर उत्तराखण्ड राज्य को 8 भौगोलिक या भौतिक क्षेत्रों में बांटा जा सकता है। यथा-
1. गंगा का मैदानी क्षेत्र,
2. तराई (तरीवाला) क्षेत्र,
3. भाबर क्षेत्र,
4. शिवालिक क्षेत्र,
5. दून (द्वार) क्षेत्र,
6. लघु या मध्य हिमालयी क्षेत्र,
7. वृहत्त या उच्च हिमालयी क्षेत्र
8. ट्रांस हिमालयी क्षेत्र
1. गंगा का मैदानी क्षेत्र -
दक्षिणी हरिद्वार का अधिकांश भाग गंगा के समतल मैदानी क्षेत्र का ही एक हिस्सा है। यह क्षेत्र गंगा आदि नदियों द्वारा लाए गये महिन कणों वाले अवसादों (कॉप मिट्टी, कीचड़ तथा बालू) से निर्मित है। यहाँ के बाढ़ प्रवण क्षेत्रों में खादर तथा गैर बाढ़ वाले क्षेत्रों में बांगर प्रकार की मिट्टी पाई जाती है। यह क्षेत्र अत्यन्त उपजाऊ है। गन्ना, गेहूँ, धान आदि यहाँ मुख्य फसलें हैं।
हरिद्वार के लक्सर, रूढ़की आदि कस्बे इसी क्षेत्र में आते हैं। यह क्षेत्र सड़क एवं रेल मार्ग से जुड़ा हैं।
2. तराई क्षेत्र -
हरिद्वार में गंगा के मैदान के तुरन्त उत्तर और पौढ़ी गढ़वाल तथा नैनीताल जिलों के दक्षिणी क्षेत्र व ऊधम सिंह नगर जिले के अधिकांश क्षेत्र को तराई कहा जाता है। इस क्षेत्र की चौड़ाई 20 से 30 किमी तक है।
गंगा के मैदान की भांति तराई क्षेत्र की भूमि का भी निर्माण महीन कणों वाली अवसादों से हुआ है। लेकिन वर्षा अधिक होने तथा भूमि के दलदली होने के कारण यह क्षेत्र मैदान से भिन्न है।
इस क्षेत्र में पतालतोड़ कुएँ (Artision wells) मिलते हैं।
इस क्षेत्र की उत्पादकता गंगा के मैदान से कम नहीं है। यहाँ अधिक पानी चाहने वाले फसलों (धान, गन्ना) की खेती अच्छी होती है। इसके अलावा यहाँ गेहूँ, आलू आदि की भी खेती की जाती है।
औरंगाबाद, ज्वालापुर, सितारंगज, बाजपुर, काशीपुर, खमीटा, रूद्रपुर आदि इसी क्षेत्र के कस्बे हैं। यह क्षेत्र सड़कों के अलावा रेल मार्ग से भी जुड़ा हैं।
इस क्षेत्र में कुमाऊँ एवं गढ़वाल के अलावा पंजाब, हरियाणा, बंगाल आदि राज्यों के लोग भी बसे हुए हैं, जो प्रायः व्यावसायिक खेती एवं अन्य व्यवसाय करते हैं।
3. भाबर क्षेत्र -
तराई क्षेत्र के तुरन्त उत्तर तथा शिवालिक क्रम की पहाड़ियों के दक्षिण 10 से 12 किमी चौड़ी पट्टी के रूप में (पूर्व में चम्पावत से पश्चिम में देहरादून तक) फैले क्षेत्र को भाबर कहा जाता है। पश्चिमी भाग में इसकी चौड़ाई अपेक्षाकृत अधिक है। इस क्षेत्र की भूमि ऊबड़-खाबड़ और मिट्टी कंकड़, पत्थर तथा मोटे बालू से युक्त होती है।
यहाँ छोटे-मोटे नदी नालों का, जब तक की बाढ़ की स्थिति न हो, प्रस्तर खण्डों की मोटी परतों के बीच अस्तित्व समाप्त सा ही लगता है, लेकिन कुछ दूरी के बाद पुनः दिखाई देते हैं और धीरे-धीरे बहते रहते हैं।
इस क्षेत्र का निर्माण प्लीस्टोसीन युग में शिवालिक से उतरने वाली बेगवती नदियों द्वारा बहाकर लाये गए वजनी अवसादों (कंकड़, पत्थर, मोटे बालू) के निक्षेप से हुआ है।
इस क्षेत्र की मिट्टी कृषि के लिए अनुपयुक्त है। अतः यहाँ में ज्यादातर जंगली झाड़ियाँ एवं अन्य प्राकृतिक वनस्पतियां पायी जाती ई हैं। कहीं-कहीं भूमि को कृषि योग्य बनाकर थोड़ी-बहुत खेती भी की जाती है।
4. शिवालिक क्षेत्र -
भाबर क्षेत्र के तुरन्त उत्तर में स्थित पहाड़ियों को शिवालिक कहा जाता है। इसे वाह्य हिमालय या हिमालय का पाद भी कहा जाता है। यह पर्वत श्रेणी हिमालय के सबसे बाहरी (दक्षिणी छोर पर स्थित है।
दक्षिणी देहरादून, उत्तरी हरिद्वार, दक्षिणी टेहरी गढ़वाल, में मध्यवर्ती पौढ़ी, दक्षिणी अल्मोड़ा, मध्यवर्ती नैनीताल व दक्षिणी चम्पावत आदि 7 जिलों में पूर्व-पश्चिम में फैले हुए इस पर्वत श्रेणी की औसत चौड़ाई 10 से 20 किमी है। पश्चिम में कहीं-कहीं इसकी चौड़ाई 50 किमी तक है, लेकिन पूर्व में कम है।
इस पर्वत श्रृंखला के चोटियों की ऊंचाई 700 से 1200 मीटर के बीच है।
यह पर्वत श्रेणी अपने उत्तर स्थित मध्य हिमालय से विशाल सीमांत दरार (घाटियों) से अलग है, लेकिन इस दरार का क्रम अधिक स्पष्ट नहीं है।
यह श्रेणी हिमालय का सबसे नवीन भाग है, जिसे 1.75 लाख से 3 करोड़ वर्ष पूर्व निर्मित हुआ माना जाता है। काल विभाजन की दृष्टि से इसका निर्माणकाल मध्य मायोसीन से निम्न प्लाइस्टोसीन तक माना जाता है। इस श्रेणी के सर्वथा नवीन होने के कारण इसमें जीवाश्म मिलते हैं।
यह मायो-प्लाइस्टोसीन बालू, कंकड़, गोलाश्म तथा संपिण्डात्मक चट्टानों की मोटी परतों से निर्मित है। इसका धरातल ऊंचा-नीचा है तथा ढाल तेज है।
उत्तराखण्ड का पामीर
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लघु हिमालय के अर्न्तगत चमोली, पौढ़ी तथा अल्मोड़ा जिलों के मध्य फैले दूधातोली श्रृंखला को उत्तराखण्ड का पामीर कहा जाता है। इस श्रेणी पर बुग्याल, चारागाह तथा बाज, खर्स व कैल वृक्षों के सघन वन है। यहाँ से पश्चिमी रामगंगा, आटागाड़, प. नयार, पू. नयार तथा वूनों आदि 5 नदियां निकली है। दूधातोली का पर्यावरणीय महत्व 5 नदियों के उदगम, औषधीय वनस्पतियों, वनों तथा कई प्रकार के वन्य जीवों के कारण है। लगभग मार्च के अंतिम सप्ताह तक बर्फ पिघल जाने के बाद यह क्षेत्र हरा-भरा हो जाता है और यहाँ हिमाचल के गद्दी और गूजर पशु चराने आते हैं। यहाँ राज्य के एवं हिमाचल के पशुचारक खरक बनाकर रहते हैं। वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली यहाँ से बहुत प्रभावित थे। यहीं (कोदियाबगड़) उनकी समाधि भी है। प्रतिवर्ष 12 जून को उनकी याद में यहाँ मेला लगता है। 1960 में वीर चन्द्र सिंह ने नेहरू से यहाँ भारत की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की मांग की गयी थी। गैरसैंण (चमोली) इसी क्षेत्र में है। ब्रिटिश काल में यह क्षेत्र चांदपुर परगने में था। |
इस श्रेणी का क्रम हिमालयी नदियों द्वारा जगह-जगह खंडित कर दिया गया है। जैसे- टिहरी, हरिद्वार में गंगा द्वारा, देहरादून में यमुना द्वारा, पौढ़ी में प. रामगंगा आदि के द्वारा, नैनीताल में भकरा, कोसी, नंधौर आदि के द्वारा आदि। अतः इस क्षेत्र में भूस्खलन तथा भारी कटाव के कारण गहरी घाटियां पायी जाती हैं।
ग्रीष्मकाल में यहाँ का मौसम बड़ा सुहावना होता है। अतः पर्यटकों के लिए ज्यादातर पर्यटन केन्द्र इसी क्षेत्र में हैं।
इस क्षेत्र में प्राकृतिक वनस्पतियाँ और जंगल अधिक पायें जाते हैं। निचले भागों में शीशम, सेमल, आंवला, बांस, साल, सागौन आदि वृक्ष, जबकि ऊंचाई वाले क्षेत्रों में शीशम, बुरांश, साल, चीड़, देवदार, बेंत, बांस आदि के वृक्ष पाये जाते हैं। यही कारण है कि इस क्षेत्र में लकड़ी सम्बंधी उद्योगों का अधिक विकास हुआ है।
इस क्षेत्र की जलवायु अपेक्षाकृत गर्म व आर्द्र है। ग्रीष्मकालीन तापमान 29.4 से 32.80 डिग्री सेन्टीग्रेड तथा शीतकालीन तापमान 4.40 से 7.20 डिग्री सेन्टीग्रेड रहता है। इस क्षेत्र में ग्रीष्मकाल में काफी वर्षा होती है। वार्षिक वर्षा की मात्रा 200 से 250 सेमी. के बीच है।
खनिज की दृष्टि से यह क्षेत्र महत्त्वपूर्ण है। देहरादून के मंदारसू, बाड़कोट तथा ऋषिकेश के पास की डोलोमाइट चट्टानों से चूने मिलते हैं, जिसका उपयोग सीमेन्ट बनाने में किया जाता है। इसके अलावा इस क्षेत्र में अच्छे किस्म के बालू, फॉस्फेटिक शैल आदि खजिन भी मिलते है संगमरमर, जिप्सम, फॉस्फेटिक शैल आदि खनिज भी मिलते हैं |
5. दून (द्वार) क्षेत्र -
शिवालिक श्रेणियों के उत्तर और मध्य हिमालय के दक्षिण, अर्थात शिवालिक और मध्य हिमालय के बीच पाई जाने वाली प्रायः 24 से 32 किमी चौड़ी व 350 से 750 मी. तक ऊंची चौरस व क्षैतिज घाटियों को पश्चिम व मध्य भाग में दून तथा पूर्व भाग में द्वार कहा जाता है।
देहरा (देहरादून), कोठारी व चौखम (पौढ़ी), पतली एवं कोटा (नैनीताल), पछवा, पूर्वी, चंदी व हर की आदि राज्य के प्रमुख दून हैं।
इन दूनों (द्वारों) या घाटियों में 75 किमी. लम्बा व 24 से 32 किमी चौड़ा देहरा दून सबसे प्रसिद्ध है। इस घाटी में धान की फसल बहुत अच्छी होती है।
इस क्षेत्र से प्रवाहित आसन, सुसवा आदि नदियां लघु हिमालय के दक्षिणी ढालों से ज्यादा मात्रा में उपजाऊ अवसाद लाकर निक्षेपित करती है।
इस क्षेत्र की भूमि कांप निक्षेपों से ढकी तथा समतल धरातलयुक्त नमन घाटी है। यहाँ गहन कृषि की जाती है। मानव जीवन के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ होने से यहाँ जनघनत्व अधिक पाया जाता है।
दून घाटियों में भूस्खलन की घटनाएं अधिक होती हैं। भूस्खलन प्रायः लघु या मध्य हिमालय श्रेणी से होते हैं।
दून क्षेत्र में गर्मी में तापमान 29.40-32.80 सेंटीग्रेट तथा जाड़े में 4.40 से 7.20 सेंटीग्रेट तक रहता है। इस क्षेत्र की औसत वार्षिक वर्षा 200-250 सेमी. है।
6. लघु या मध्य हिमालयी क्षेत्र -
यह क्षेत्र या पर्वत श्रेणी शिवालिक श्रेणियों के उत्तर तथा वृहत्त हिमालय के दक्षिण चम्पावत (पूर्वी छोर), नैनीताल, अल्मोड़ा, चमोली, पौढ़ी गढ़वाल, रूद्र प्रयाग, टेहरी गढ़वाल, उत्तरकाशी तथा देहरादून (पश्चिमी छोर) आदि 9 जिलों में पूर्व-पश्चिम के विस्तृत है। राज्य में इसकी चौड़ाई 70 से 100 किमी तक है।
लघु हिमालय क्षेत्र की ऊंचाई 1200 से 4500 मीटर के बीच है। लघु हिमालय क्षेत्र की श्रेणियां राज्य में विभिन्न डांडो के रूप में में विभाजित हैं। इनके बीच में कहीं पठार तो कही नदी घाटियां हैं। देववन, गागटिब्बा, रीवा, मसूरी, झंडीधार, चाइना, मूसा का कोठा, लोखण्डीटिब्बा, सुरकण्डा, चन्द्रवदनी, मन्द्राचल, हटकुणी, लालटिब्बा, दुधातोली, धनपुर, अमोली, विनसर, दीपा, द्रोणागिरि, उतांइ, रानीखेत मध्य हिमालय की प्रमुख श्रेणियां हैं।
इस क्षेत्र के श्रेणियों आंशिक हिमाच्छ होने के कारण इस क्षेत्र को हिमंचल अर्थात हिम का आंचल भी कहा जाता है।
लघु हिमालय श्रेणी के पर्वतों में जीवाश्म का बिल्कुल अभाव पाया जाता है।
मध्य हिमालय का निर्माण वलित एवं कायांतरित चट्टानों से हुआ है।
काल की दृष्टि से ये पर्वत प्री-कैम्ब्रियन तथा पैलियाजोइक काल के चट्टानों के बने हैं, जिसमें स्लेट, चूना पत्थर, शैल, क्वार्ट्ज, नीस, ग्रेनाइट आदि चट्टानों की अधिकता पायी जाती है।
इस श्रेणी के विभिन्न स्थानों से कई खजिन प्राप्त होते हैं। जैसे- तांबा (अल्मोड़ा व पौढ़ी), एस्बस्टस ( पौढ़ी गढ़वाल), ग्रेफाइट ( पौढ़ी गढ़वाल व अल्मोड़ा), जिप्सम एवं मैग्नेसाइट आदि।
इस श्रेणी के दक्षिण की ओर के ढाल तेज है, जबकि उत्तरी ढाल मंद है, और वनों से ढके हैं।
इस हिमालय से सरयू, पं. रामगंगा, लधिया, नयार, मंडल आदि कई नदियाँ निकली हैं जो कि एक हजार मीटर से अधिक गहराई की घाटियों में बहती हैं।
कुमाऊं क्षेत्र में इस श्रेणी के दक्षिणी ढाल पर लगभग 200 वर्ग किमी के क्षेत्र में अनेक ताल (झील) पाये जाते हैं। जैसे नैनी, नौकुचिया, सातताल, पूनाताल, खुरपाताल, सूखाताल, सरियाताल, भीमताल आदि।
जाड़े में इस श्रेणी के हिमाच्छादित होने के कारण यहाँ तापमान शून्य के नीचे पहुँच जाता है, लेकिन इसके नीचले भाग का ताप कुछ अधिक रहता है।
वर्षा-काल में यहाँ औसत वार्षिक वर्षा 160 से 200 सेमी. तक होती है।
गर्मी में यह क्षेत्र बहुत सुहावना ( 18°C से 20°c ) हो जाता है। इस समय यहाँ पर्यटकों की भीड़ लग जाती है। इस क्षेत्र में राज्य के लगभग आधे लोग रहते हैं।
इस क्षेत्र में शीतोष्ण कटिबन्धीय सदाबहार प्रकार के कोणधारी सघन वन मिलते हैं। सम्पूर्ण क्षेत्र का लगभग 45 से 60%. भाग वनाच्छादित है। इन वनों में बाँज, खरसों, चीड़, फर, देवदार, साल व सरो आदि वृक्षों की बाहुल्य है।
इस पर्वत श्रेणी के ढालों पर छोटे-छोटे घास के मैदान पाये जाते हैं, जिन्हे कुल्लू में थच, कश्मीर में मर्ग (गुलमर्ग, सोनमर्ग, टनमर्ग) और उत्तराखण्ड में बुग्याल एवं पयार कहा जाता है। इन्हें पशुचारकों का स्वर्ग कहा जाता है।
मानव निवास तथा कृषि की दृष्टि से भी यह क्षेत्र काफी महत्वपूर्ण है। यहाँ की अधिकांश मिट्टी पथरीली है फिर भी यहाँ ऊँचे पहाड़ों से लेकर नीचे नदी की घाटियों तक में कृषि की जाती है। पर्वतीय ढालों पर सीढ़ीदार खेत का निर्माण कर खेती की जाती है।
घाटियों में धान, गेहूँ, ज्वार, मक्का एवं सब्जियों की खेती की जाती है। यहां अलकनन्दा की घाटी चुआ ज्वार के लिए प्रसिद्ध है तो अल्मोड़ा मक्का के लिए। झील वाले क्षेत्रों में झीलों के किनारे-किनारे सब्जियों तथा खाद्यान्नों की खेती की जाती है।
इस क्षेत्र में शीतोष्ण कटिबंधीय फल (सेब, नाशपाती, चेरी, अखरोट आदि) 2500 मीटर की ऊँचाई तक पैदा किये जाते हैं।
7. वृहत्त या उच्च हिमालयी क्षेत्र -
यह क्षेत्र लघु हिमालय के उत्तर और ट्रांस हिमालय क्षेत्र के दक्षिण में स्थित है। सबसे ऊंची चोटियों वाले इस पर्वत श्रेणी को वृहद् या उच्च या आन्तरिक या महा या मुख्य हिमालय कहा जाता है। प्राचीन ग्रंथों में इसे हिमाद्री (हिमाच्छादित होने के कारण) कहा गया है।
उत्तराखण्ड में इस पर्वत श्रेणी की चौड़ाई 15 से 30 किमी तक और ऊँचाई 4500 से 7817 मीटर ( नन्दादेवी) तक है। यह श्रेणी राज्य के उत्तरकाशी, टेहरी गढ़वाल, रूद्रप्रयाग, चमोली, बागेश्वर, पिथौरागढ़ आदि 6 जिलों में पूर्व-पश्चिम के फैली हुई है।
महा हिमालय श्रेणी को भागीरथी, अलकनन्दा, धौली, गोरी गंगा आदि नदियों द्वारा कई खण्डों में विभक्त कर दिय गया है। प्रत्येक में एकाधिक श्रेणियां हैं। जैसे-
1. बंदरपुंछ-श्रीकंठ-यमुनोत्री,
2. गंगोत्री-केदारनाथ-चौखम्भा,
3. कामेट-गौरी-माणा,
4. नन्दादेवी दूनागिरि-त्रिशूल-नन्दाकोट,
5. पंचाचूली,
6. कुटी शंग्टांग आदि।
इस क्षेत्र के विशाल हिमनद (ग्लैशियर) प्लाइस्टोसीन युग के हिमाच्छादन का साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। इन हिमनदों को हिमानियां, बर्फ की नदिया (क्योंकि इनमें प्रवाह होता है) व बमक आदि नामों से भी जाना जाता है। इन्हीं से अनेक नदियों का जन्म हुआ है।
इस पर्वत श्रेणी का लगभग पूरा क्षेत्र अत्यंत पथरीला और कटा-फटा है, जो कि कई पंखाकार उपनतियों वाली मोड़दार श्रृंखलाओं द्वारा निर्मित है।
इस श्रेणी की चट्टाने 130 से 140 करोड़ वर्ष पुरानी मानी जाती है। इसके गर्भ भाग में ग्रेनाइट, नीस और शिष्ट चट्टानें पाई जाती हैं। पार्श्व भागों में रूपांतरित एवं अवसादी चट्टानें पाई जाती हैं।
इस पर्वत श्रेणी में अनके दर्रे (गिरिद्वार) पाये जाते हैं।
यह अत्यन्त ठंडा क्षेत्र है। यहां की चोटियाँ वर्ष भर बर्फ से ढकी रहती है। निचले क्षेत्रों को तापमान कुछ अधिक होता है। शीतकाल में यहाँ हिमपात अधिक होता है, जिससे इसका काफी भाग बर्फ से ढक जाता है।
ग्रीष्मकाल में इस क्षेत्र में अधिक वर्षा होती है। मानसूनी हवाएं पर्वतों से टकरा-टकरा कर खूब वर्षा करती हैं। कुछ क्षेत्र वृष्टि छाया में अनु पड़ जाने के कारण वर्षा से वंचित रह जाते है।
इस क्षेत्र में 12-13 हजार फीट से ऊपर प्राकृतिक वनस्पतियों का नितांत अभाव मिलता है। जबकि निचले भागों में 12-13 हजार से 10 हजार फीट तक कुछ घासें और झाड़िया पायी और 10 हजार फीट से नीचे शीतोष्ण कटिबंधीय सदाबहार नुकीले पत्ती प्र वाले वन पाये जाते हैं, जिसमें फर, सरों, चीड़, साल, सागौन के आदि के वृक्ष मिलते हैं।
निचले भागों में छोटे-छोटे घास के मैदान मिलते हैं, जिन्हें बुग्याल, पयार, अल्पाइन पाश्चर्स आदि नामों से जाना जाता है। विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी इसी क्षेत्र में स्थित है।
वृहत्त हिमालय के मूल निवासी और कठोर परिश्रमी भोटिया लोग यहाँ की घाटियों में फावड़े और खुरपी के माध्यम से ग्रीष्मकालीन कृषि करते है। गर्मी के चार महिने में यें जौ, मड़वा, गेहूँ आदि की थोड़ी-बहुत पैदावार कर लेते हैं।
यहाँ के निवासियों का प्रमुख कार्य पशुपालन है। इसके अलावा वें ऊनी हस्तशिल्प, खाल, जड़ी-बूटी आदि से सम्बंधित व्यवसाय भी करते हैं।
गर्मियों में 10 हजार फीट से ऊपर के क्षेत्रों के अल्पाइन चारागाहों में भागीरथी तथा अलकनंदा नदी घाटियों से जाड, मारछा व तोलछा आदि भेटिया तथा धौली-गौरी-काली नदी घाटियों से शौका व जोहार आदि भोटिया अपने पशुओं को लेकर आते हैं।
8. ट्रांस हिमालयी (टिबियान) क्षेत्र -
यह महाहिमालय के उत्तर में स्थित है। इस क्षेत्र का कुछ भाग भारत में व कुछ तिब्बत (चीन) के नियंत्रण में है। इस क्षेत्र की चौड़ाई 20 से 30 किमी. व ऊंचाई 2500 से 3500 मी. है। इस क्षेत्र की पर्वत श्रेणियों को जैंक्सर श्रेणी कहा जाता है।
जेलूखगा, माणा, नीति, चोरहोती, दमजन, शलशल, किंगरी-जिंगरी, दारमा, लिपुलेख आदि दरें इसी क्षेत्र में हैं।
महा हिमालय श्रेणी की प्रमुख चोटियां
शिखर |
ऊंचाई |
जनपद |
नन्दादेवी (पश्चिमी) |
7,817 मी. |
चमोली (राज्य कासर्वोच्च शिखर) |
कामेट |
7,756 मी. |
चमोली (दूसरा सर्वोच्च शिखर) |
नन्दादेवी पूर्वी |
7,434 मी. |
चमोली-पिथौ.(तीसरा सर्वोच्च शिखर) |
माणा |
7,272 मी. |
चमोली |
बद्रीनाथ |
7,140 मी. |
चमोली |
चौखम्बा |
7,138 मी. |
चमोली |
त्रिशूल |
7,120 मी. |
चमोली |
सतोपंथ |
7,084 मी. |
चमोली |
द्रोणगिरि ( दूनागिरि ) |
7,066 मी. |
चमोली |
गंधमादन |
6,984 मी. |
चमोली |
केदारनाथ |
6,968 मी. |
चमोली- उत्तरकाशी |
कालोंका |
6,931 मी. |
चमोली |
पंचाचूली |
6,904 मी. |
पिथौरागढ़ |
नन्दाकोट |
6,861 मी. |
चमोली- पिथौरागढ़ |
भागीरथी |
6.856 मी. |
उत्तरकाशी |
श्रीकंठ |
6,728 मी. |
उत्तरकाशी |
हाथीपर्वत |
6,727 मी. |
चमोली |
देवस्थान |
6,678 मी. |
चमोली |
नन्दाखाट |
6,674 मी. |
चमोली |
गंगोत्तरी |
6,672 मी. |
उत्तरकाशी |
नीलकंठ |
6,597 मी. |
चमोली |
यमुनोत्री |
6,400 मी. |
उत्तरकाशी |
बंदरपुंछ |
6,320 मी. |
उत्तरकाशी |
नंदा घुंघटी |
6,309 मी. |
चमोली |
स्वर्गारोहिणी |
6,252 मी. |
चमोली- उत्तरकाशी |
गौरी |
6,250 मी. |
चमोली |
गुन्नी |
6,180 मी. |
चमोली - पिथौरागढ़ |
नारायण पर्वत |
5,965 मी |
चमोली |
नरपर्वत |
5,831 मी. |
चमोली |
जैलंग |
5,871 मी. |
उत्तरकाशी |
- कामेट व गौरी पर्वत, धौली व सरस्वती नदी के मध्य हैं।
- 6x1.5 किमी. की बद्रीनाथ घाटी नर व नारायण पर्वतों के मध्य है।
- धौली (प.) व गोरी गंगा के बीच पंचाचूली पर्वत है।
- राज्य की अधिकांश ऊँची चोटियों वाले पर्वत शिखर गढ़वाल मण्डल में हैं।
उत्तराखण्ड की भौगोलिक संरचना के आधार पर महत्वपूर्ण प्रश्न (FAQ)
FAQ 1 : उत्तराखंड का क्षेत्रफल कितना है ?
53,483 वर्ग किमी.
FAQ 2 : उत्तराखंड राज्य से लगी अन्तर्राष्ट्रीय सीमा की कुल लम्बाई कितनी है ?
लगभग 625 किमी.
FAQ 3 : उत्तराखंड राज्य से लगी चीन सीमा की लम्बाई कितनी है ?
350 किमी
FAQ 4 :उत्तराखंड राज्य से लगी केवल तिब्बत सीमा की लम्बाई कितनी है ?
लगभग 300 किमी
FAQ 5 :उत्तराखंड राज्य से लगी नेपाल सीमा की लम्बाई कितनी है ?
275 किमी
FAQ 6 : उत्तराखंड राज्य का आकार कैसा है ?
आयताकार
FAQ 7 :क्षेत्रफल की दृष्टि से उत्तराखंड भारत का कौन सा राज्य है ?
19वॉ राज्य
FAQ 8 :उत्तराखंड राज्य के कुल क्षेत्रफल में पर्वतीय भाग कितना है ?
46,035 वर्ग किमी.
FAQ 9: उत्तराखंड राज्य के कुल क्षेत्रफल में मैदानी भाग कितना है ?
7448 वर्ग किमी.
FAQ 10 : उत्तराखंड का सर्वाधिक क्षेत्रफल वाला जिला कौन सा है ?
उत्तराखंड राज्य के कुल क्षेत्रफल में गढ़वाल एवं कुमाऊं मण्डल के भाग मे सर्वाधिक क्षेत्रफल वाला जिला चमोली (8,030 वर्ग किमी.) है |
FAQ 11 : उत्तराखंड का सबसे कम क्षेत्रफल वाला जिला कौन सा है ?
उत्तराखंड राज्य के कुल क्षेत्रफल में गढ़वाल एवं कुमाऊं मण्डल के भाग मे सबसे कम क्षेत्रफल वाला जिला चम्पावत (1,766 वर्ग किमी) है |
FAQ 12 : सर्वाधिक क्षेत्रफल वाले 4 जिले घटते क्रम में कौन से है ?
चमोली: (8,030), उत्तरकाशी (8,016) पिथौरागढ़ (7,090) एवं पौढ़ी (5,329 वर्ग किमी.)
FAQ 13 : सबसे कम क्षेत्रफल वाले 4 जिले बढ़ते क्रम में कौन से है ?
चम्पावत (1766), रुद्रप्रयाग (1984), वागेश्वर (2246) व हरिद्वार (2360)
FAQ 14 :उत्तराखंड की सबसे कम सीमा रेखा किस राज्य से लगती है ?
हिमाचल प्रदेश
FAQ 15 : उत्तराखंड का कौन सा जिला सर्वाधिक राज्यों को स्पर्श करता है ?
देहरादून
FAQ 16 :उत्तर प्रदेश को उत्तराखंड के कितने जिले स्पर्श करते है ?
5 (देहरादून, हरिद्वार, पौढ़ी, नैनीताल और ऊ.सिं. नगर)
FAQ 17 : उत्तराखंड के कितने जिले नेपाल को स्पर्श करते है ?
3 (ऊधम सिंह नगर, चम्पावत और पिथौरागढ़)
FAQ 18 : उत्तराखंड के कितने जिले तिब्बत (चीन) को स्पर्श करते है ?
3 (पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी)
FAQ 19 : उत्तराखंड राज्य के सबसे पूर्वी और पश्चिमी जिले क्रमशः कौन से है ?
पिथौरागढ़ और देहरादून
FAQ 20 :उत्तराखंड राज्य के सबसे उत्तरी और दक्षिणी जिले क्रमशः कौन से है ?
उत्तरकाशी और ऊधम सिंह नगर
FAQ 21 : उत्तराखंड राज्य का सबसे लम्बी अंतर्राष्ट्रीय सीमा रेखा वाला जिला कौन सा है ?
पिथौरागढ़ (नेपाल और तिब्बत से)
FAQ 22 :उत्तराखंड राज्य का वह कौन सा जिला जिसे दो देश स्पर्श करते हैं ?
पिथौरागढ़
FAQ 23 : उत्तर प्रदेश. से सर्वाधिक और सबसे कम सीमा रेखा वाले जिले क्रमशः कौन से है ?
ऊधम सिंह नगर व नैनीताल
FAQ 24 :उत्तराखंड राज्य के सर्वाधिक जिलों को स्पर्श को स्पर्श करने वाला जिला कौन सा है ?
पौढ़ी (7 जिलों)
FAQ 25: उत्तराखंड के पर्वत श्रेणियों पर स्थिति प्रमुख नगर कौन से है ?
नैनीताल, रानीखेत, अल्मोड़ा, डोडीहाट, जोशीमठ, गोपेश्वर, पौढ़ी, मसूरी आदि ।
FAQ 26 : उत्तराखंड के पर्वत घाटियों में बसे प्रमुख नगर कौन से है ?
देहरादून, चम्पावत, पिथौरागढ़, बागेश्वर आदि।