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बागेश्वर | Bageshwar - Uttarakhand GK

 बागेश्वर

बागेश्वर या बागनाथ अल्मोड़ा से 90 किमी की दूरी पर मध्य हिमालय की घाटी में स्थित है। इसे उत्तर का वाराणसी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि यहा शिव व्याघ्र का रूप धर कर विचरण करते थे। अतः इसका एक नाम व्याघ्रेश्वर भी है। इसके पूर्वी एवं पश्चिमी भाग में क्रमश: भीलेश्वर एवं नीलेश्वर पर्वत तथा उत्तरी एवं दक्षिणी भाग में क्रमशः सूरज कुन्ड अग्नि कुण्ड है। सरयू, गोमती एवं अदृश्य सरस्वती नदियों के संगम पर स्थित बागेश्वर नगर, समस्त पापों से मुक्ति प्रदान करने वाले भगवान सदाशिव की धर्मपरायण भूमि के रूप में पूजनीय है। 1997 में इसे जिला बनाया गया इससे पूर्व यह अल्मोड़ा का एक तहसील था।

  • मानसखण्ड में गोमती और सरयू नदी के मध्य नीलगिरि (बागेश्वर) की स्थिति का वर्णन है। इस नीलपर्वत को साधारण पर्वत न मानकर सर्वश्रेष्ठ मेरू (सुवरणांचल) के समान माना गया। है। मत्स्य पुराण में भी नीलपर्वत को पवित्र तीर्थ माना गया है और पितृ कर्म के लिए अति प्रशस्त कहा गया है।
  • मानसखण्ड के अनुसार चण्डीश नामक शिवगण ने शिव के निवास हेतु सरयू और गोमती के मध्य स्थित नीलपर्वत से सूर्य तीर्थ के ऊर्ध्व भाग में वरुणा और अग्नि तीर्थ के ऊपर असी तीर्थ की और इन दोनों के मध्य महाक्षेत्र (वाराणासी) की रचना की। इस प्रकार दूसरी वाराणसी की स्थापना होने पर भगवान शिव, पार्वती सहित वहां आ पहुंचे। उपस्थित गणनायकों ने 'वाणीश्वर' नाम से शिव की स्तुति की। यही वागीश या वाणीश्वर या बागेश्वर या बागनाथ 'शिव-नाभि' के रूप में भी जाने जाते हैं।
  • मानसखण्ड में सरयू को गंगा, गोमती को यमुना माना गया है, नीलगिरि को विंध्य अथवा सुवर्णांचल और यहां स्थित पीपल को अक्षय वट कहा गया है। माधव की मूर्ति को बिन्दुमाधव तथा दोनों नदियों के संगम को तीर्थराज प्रयाग बताया गया है। यहां विद्यमान वागीश को विश्वेश्वर और इस नगरी को वाराणसी का दूसरा रूप माना गया है।
  • यहां की महत्ता, प्राचीनता एवं ऐतिहासिकता का ज्ञान बागेश्वर मन्दिर परिसर में उत्कीर्ण (वर्तमान में अप्राप्त) 9वीं सदी के कत्यूरी शासक भूदेव के प्रस्तर शिलालेख से प्राप्त होता है। इस शिलालेख को भूदेव ने बागेश्वर मन्दिर समूह में दक्षिण दिशा स्थित एक शिला पर उत्कीर्ण कराया था। इस लेख में बागेश्वर को व्याघ्रेश्वर कहा गया है।

 


बागेश्वर के प्रमुख दर्शनीय स्थल इस प्रकार-

बागनाथ मंदिर - बागनाथ मंदिर शहर के निकट गोमती और सरयू के संगम पर शिव का यह मंदिर स्थित है। इसमें कई देवताओं की मूर्तियां है। बागेश्वर शहर से 8 किमी दूर गरी गुफा, 5 किमी. हख मंदिर तथा आधा किमी. पर चंडिका मंदिर है।

बागनाथ मंदिर का इतिहास:

कुछ सूत्रों का कहना है कि बाघनाथ मंदिर 7वीं शताब्दी से अस्तित्व में था और वर्तमान नागर शैली की इमारत 1450 में चंद शासक लक्ष्मी चंद द्वारा बनाई गई थी। स्कंद पुराण में भी इस मंदिर का उल्लेख मिलता है। साथ ही, मंदिर में देखी गई विभिन्न पत्थर की मूर्तियां 7वीं शताब्दी ईस्वी से 16वीं शताब्दी ईस्वी पूर्व की हैं।

बागनाथ मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा:

हिंदू शास्त्रों के अनुसार, बगनाथ मंदिर स्थल वह स्थान है जहां ऋषि मार्कंडेय ने भगवान शिव की पूजा की थी। ऋषि की प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान शिव अपने बाघ अवतार में प्रकट हुए और मार्कंडेय को अपनी उपस्थिति का आशीर्वाद दिया।

मंदिर में मेले और त्यौहार:

जनवरी के महीने में, मंदिर मकर संक्रांति के अवसर पर 'उत्तरायणी' नामक एक भव्य मेले का आयोजन करता है। इस त्योहार को पवित्र स्नान द्वारा चिह्नित किया जाता है जो भोर के समय गोमती और सरयू नदी के संगम पर होता है। पवित्र स्नान के बाद बागनाथ मंदिर के अंदर स्थापित शिवलिंग पर जल चढ़ाया जाता है। धार्मिक प्रवृत्ति वाले लोग इस अनुष्ठान को लगातार तीन दिनों तक जारी रखते हैं जिसे 'त्रिमाघी' के नाम से जाना जाता है।

कौसानी - यह से 39 किमी पश्चिम कोसी और गरुड़ नदियों के बीच पिंगनाथ पहाड़ी पर समुद्रत से 1890 मी. की ऊँचाई पर स्थित विशिष्ट पर्यटन नगर कौसानी का मुख्य आकर्षण हिमालय दर्शन एवं सूर्योदय सूर्यास्त दृश्य है। पहले यह अल्मोड़ा में था. लेकिन वर्तमान में बागेश्वर जिले में है। पहले इसका नाम बलना था। कहा जाता है कि कौशिक मुनि की तपस्थली होने के कारण इसका नाम कौसानी पड़ा।

  • हिमालय का यहाँ जैसा विस्तृत दृश्य राज्य के स्थानों से दिखाई देता है। यहाँ से चौखम्भा, त्रिशूल, नन्दा देवी, बहुत कम नन्दा कोट, पंच चूली और नन्दा घूघटी की सभी चोटियाँ स्पष्ट दिखाई पड़ता है।
  • कत्यूर घाटी कौसानी के सामने स्थित है जहाँ से सूर्योदय का मनोरम दृश्य दिखता है। 
  • 1929 में महात्मा गाँधी यहाँ पर 14 दिन तक रहे थे और 'यंग इण्डिया' के अपने एक लेख में उन्होंने कौसानी को 'भारत का स्विट्जरलैंड' कहा।
  • गांधी जी ने जिस स्थान पर प्रवास किया था उसे अनाशक्ति आश्रम नाम दे दिया गया है, क्योंकि यहीं पर उन्होंने गीता का अनासक्ति योग लिखा था। यहीं पर गांधीजी की शिष्या सरला बहन का लक्ष्मी आश्रम भी है। यहाँ चाय के बागान भी हैं। उत्तराखण्ड के प्रसिद्ध गिरियास टी का उत्पादन यहीं होता है।
  • यहीं पर महान प्रकृति प्रेमी कवि सुमित्रानन्दन पंत की जन्म स्थली भी है। उनके जन्म स्थल (पंतवीथिका) पर एक लघु संग्रहालय स्थापित किया गया है।
  • प्रसिद्ध लोकसंगीतज्ञ गोपीदास भी कौसानी के सौन्दर्य सेअत्यधिक प्रभावित हुए थे।
  • कौसानी के निकट ही पिनाकेश्वर महादेव (10 किमी),बूरा पिननाथ (5 किमी) एवं भकोट आदि प्रसिद्ध स्थल भी है 

बैजनाथ- यह बागेश्वर से 26 किमी. पश्चिम तथा कौसानी से.. 19 किमी. उत्तर की ओर गोमती गरुणगंगा संगम पर मंदिरों का एक समूह है। इस मंदिर के साथ एक संग्रहालय भी है। बैजनाथ के मुख्य मंदिर में आदमकद पार्वती की पत्थर की बनी मूर्ति स्थापित है, जो कांस्य की बनी मूर्ति होने का भ्रम पैदा करती है। बैजनाथ के मंदिरों का कत्यूरी, चंद तथा गंगोली वंश के राजाओं ने समय समय पर जिर्णोद्धार करवाया। मंदिर के समीप एक चौपड़-चबूतरा है, जो कि यहाँ कत्यूरी राजाओं की राजधानी होने का प्रमाण प्रस्तुत करता है।

पिण्डारी ग्लेशियर - नंदाकोट शिखर के पश्चिमी ढाल पर लगभग 03 किमी. लम्बा 380 मी. चौड़ा यह ग्लेशियर बहुत आकर्षक है। यहाँ मोनाल पक्षी, कस्तूरी मृग तथा भोजपत्र के वृक्ष देखे जा सकते हैं।

कोट भ्रामरी व नन्दा मन्दिर - बैजनाथ से लगभग 2 किमीमीटर दूर डंगोली के पास कोट भ्रामरी का मन्दिर स्थापित हैं। यहाँ कत्यूरों की अधिष्ठात्री कुल देवी 'भ्रामरी' तथा चन्दवंश द्वारा स्थापित 'नन्दादेवी' मंदिर है।

पाण्डुस्थल - जिला मुख्यालय से 28 किमी की दूरी पर कुमाऊं व गढ़वाल की सीमा पर प्राकृतिक दृष्टि से अत्यन्त रमणीक यह स्थल है। किवंदती के अनुसार यहाँ अज्ञातवास में पाण्डवों ने प्रवास किया था। श्री कृष्ण जन्माष्टमी को यहां क्षेत्र का सुप्रसिद्ध मेला लगता है।

भद्रकाली - बागेश्वर से 33 किमी. की दूरीपर यह शक्तिपीठ स्थित है। इस पीठ को कुमाऊं में गढ़वाल के कालीमठ के समान प्रतिष्ठा है। यहाँ तीनों स्वरूप (महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती) की मूर्तियां हैं।


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